Chandrayaan 3: चंद्रयान 3-भारत का वो यान जिसने चाँद की जमीन पर उतरकर इतिहास रचा| यह उपलब्धि भारत से पहले, दुनिया में केवल तीन मुल्क ही हासिल कर पाए थे| अमेरिका, रूस और चीन चाँद की जमीन पर लूनर मिशन उतार चूके थे| अब भारत ने ये कारनामा कर इस क्लब में अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी है| इसरो ने समयानुसार 14 जुलाई को दोपहर 2:35 पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से स्पेसशिप चंद्रयान तीन को लॉन्च किया और 23 अगस्त 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की जमीन पर लैंडर उतारकर, भारत दक्षिणी ध्रुव पर ऐसा करने वाला पहला देश बन गया| आइये जानते हैं इसरो के मुताबिक क्या हैं चंद्रयान 3 मिशन के तीन अहम् लक्ष्य:
आजादी के करीब 16 साल बाद ही भारत की अंतरिक्ष-गाथा का सफर शुरू हो गया था| पहले रॉकेट को साइकिल पर लादकर प्रक्षेपण स्थल पर ले जाया गया था| दूसरे रॉकेट के काफी बड़े और भारी होने के कारण इसे बैलगाड़ी के सहारे प्रक्षेपण स्थल पर ले जाया गया| भारत को सफलता तब मिली जब भारत ने 21 नवंबर 1963 को थुम्बा, केरला में अपना पहला रॉकेट लॉन्च किया| इसके बाद 19 अप्रैल 1975 को भारत ने सोवियत संघ के रॉकेट की मदद से अपने पहले उपग्रह आर्यभट्ट को लॉन्च किया था| ये सफर आगे बढ़ते हुए चाँद पर पहले लैंडर मिशन तक पहुँच चुका है|
सितंबर 2019 में यही वो वक्त था जब चंद्रयान 2 का विक्रम नाम का लैंडर सॉफ्ट लैन्डिंग नहीं कर सका था और हार्ड-लैन्डिंग कर क्रैश हो गया था| इसरो के चीफ एस.सोमनाथ का आत्मविश्वास और जोश की यह बताने के लिए काफी था कि चंद्रयान 3 के लिए इसरो ने हर तरह के जोखिम से निपटने के लिए तैयारी की है|
6 सितंबर 2019 की रात को 1:51 का यही वो वक्त था जब चंद्रयान 2 का विक्रम चाँद की सतह के एकदम करीब था| विक्रम चाँद की सतह से महज 300 मीटर दूर था, तब इसरो के मिशन कंट्रोल रूम में तनाव बढ़ चुका था| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वहाँ मौजूद थे| 1:57 मिनट हो चूके थे| तभी इसरो के तत्कालीन चीफ के.सिवन प्रधानमंत्री मोदी के पास आए और उन्हें कुछ बताने लगे, फिर अपनी सीट की तरफ लौट गए| इसके बाद उन्होनें माइक पर सबसे मुश्किल अनाउंसमेंट किया| उन्होंने बताया कि लैंडर विक्रम जब चाँद की सतह से 2.1 किलोमीटर की दूरी पर था तब ग्राउंड स्टेशन से उसका संपर्क टूट गया|
चंद्रयान 2 नाकाम मिशन नहीं था| उसने सॉफ़्ट लैन्डिंग छोड़कर अपने ज्यादातर लक्ष्य पूरे किये थे| इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों से निराश ना होने को कहा था| 4 साल में इसरो ने कड़ी मेहनत की और चंद्रयान 2 मिशन की कमियों को दूर किया| इसी कारण भारत चंद्रयान 3 को सफल बनाने में कामयाब हुआ|
इसरो के मुताबिक, चंद्रयान 3 मिशन के तीन अहम लक्ष्य हैं:
पहला: चन्द्रयान 3 के लैंडर की चाँद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैन्डिंग (जिसे उसने 23 अगस्त 2023 को सफलता पूर्वक हासिल किया)
दूसरा: इसके रोवर को चाँद की सतह पर चलाकर दिखाना (रोवर के चाँद पर चलने की वीडियो को इसरो ने जारी किया है) और
तीसरा: कुछ अहम वैज्ञानिक परीक्षण करना|
चंद्रयान 3 में चंद्रयान 2 की ही तरह एक लैंडर (विक्रम) और एक रोवर (प्रज्ञान) था| जैसे ही यह दोनों चाँद की सतह पर पहुंचे, लैंडर और रोवर अगले एक लूनर डे या चंद्र दिवस यानी धरती के 14 दिनों के बराबर के वक्त के लिए सक्रिय हो गए| लूनर डे चाँद के उन 14 से 15 दिनों का वक्त है, जब वहाँ सूरज निकला होता है क्योंकि बाकी के 14-15 दिन वहाँ सूरज नहीं निकलता है|
चंद्रयान-3 के लैंडर की चाँद की सतह पर लैंडिंग के लिए जरूरी था कि वहाँ सूरज निकला हो, तो लैंडर और रोवर यान मिलकर इस मिशन को कैसे पूरा करेंगे, इससे पहले जानते हैं कि लैंडर और रोवर यान होते क्या हैं| दरअसल किसी भी आकाशीय पिंड पर उतरने के लिए लैंडर यान होते हैं| चंद्रयान 3 के लैंडर-विक्रम ने चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करी| सॉफ्ट लैन्डिंग तब होती है, जब अंतरिक्ष यान चाँद की सतह पर धीरे-धीरे अपनी गति को कम करते हुए उतरते हैं| हार्ड लैंडिंग तब होती है, जब कोई यान चाँद या किसी आकाशीय पिंड पर उतरते हुए उसकी सतह से टकराकर क्रैश हो जाए, जैसा कि चंद्रयान 2 के मामले में हुआ था| रोवर यान वो होते हैं जो सॉफ्ट लैन्डिंग के बाद सतह पर घूम सकते हैं|
चंद्रयान 3 चन्द्रमा की जिस जगह पर उतरा उसे "शिव शक्ति" नाम दिया गया है| इसी प्रकार चंद्रयान 2 के चन्द्रमा पर हार्ड लैंडिंग करने के स्थान को तिरंगा कहा गया है|
चंद्रयान 3 (Chandrayaan 3)
चंद्रयान 3 मिशन 14 जुलाई 2023 को LVM-3 रॉकेट के इग्निशन के साथ ही शुरू हो गया था| ऊपर पहुंचने पर अब तक इसे उड़ा रहे इसके अगल-बगल लगे S200 (solid fuel) रॉकेट अलग हो जाएंगे| आगे चल कर पे लोड को कवर कर देने वाले खोल भी अलग हो जाएंगे| फिर रॉकेट का दूसरा चरण भी अलग हो जाएगा| तीसरे चरण में क्रायोजेनिक इंजन चालू हो जाएगा, जिसके बाद चंद्रयान का पे-लोड भी अलग हो जाएगा|
अब अपने प्रोपल्शन से बढ़ते पे-लोड का रुख सूरज की तरफ हो जाएगा, जिसकी ताकत के खिंचाव से ये धरती के कई चक्कर लगाते हुए उससे दूर होता चला जायेगा| फिर एक वक्त ऐसा भी आएगा जब वो धरती के गुरुत्वाकर्षण के दायरे से बाहर निकलकर चाँद की परिक्रमा पथ में प्रवेश कर जाएगा| चाँद के नजदीक पहुंचने पर इस पे-लोड का लैंडर यान धीरे-धीरे डी-बूस्ट होने लगेगा यानी उसका प्रोपल्शन धीमा होने लगेगा ताकि उसकी रफ्तार कम होती जाये और वो चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैन्डिंग कर सके|
यह अभियान न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है| लैंडर चाँद की उस सतह पर जाएगा जिसके बारे में अब तक कोई जानकारी मौजूद नहीं है| लिहाजा इस अभियान से हमारी धरती के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चाँद के विषय में जानकारी और बढ़ेगी| इसरो के इन प्रयोगों की कामयाबी निश्चित तौर पर अंतरिक्ष में भारत की सफलता का नया इतिहास लिखेगी| लेकिन इसरो आगे भी नया इतिहास लिखने को तैयार है|
इसरो ने रॉकेट को बनाने और मिशन को पूरा करने में बहुत किफायत से सिर्फ ₹651 करोड़ का बजट रखा, जो दूसरी स्पेस एजेंसियों के मुकाबले बहुत कम है| इसरो के इस महत्वाकांक्षी मिशन के लिए भारत के सबसे भारी रॉकेट LVM 3 को सतीश धवन सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड तक पहुंचाया गया| 14 जुलाई को इसी लॉन्च पैड से चंद्रयान तीन को लॉन्च किया जाएगा, जिसके लिए LVM 3 को चंद्रयान से जोड़ने का मिशन पूरा कर लिया गया है| LVM 3 रॉकेट को ही पहले GSLV Mark 3 के नाम से जाना जाता था| इस रॉकेट की मदद से इसरो का चंद्रयान बिना किसी गलती के मिशन को पूरा करने के लिए तैयार है|
LVM 3 या जीएसएलवी मार्क थ्री के नाम से जाना जाने वाले भारी रॉकेट को क्रायोजेनिक इंजन ताकत देता है, जिसकी तकनीक बहुत पेचीदा है| इस तकनीक में इसरो महारत हासिल कर चुका है| इस इन्जन की जांच कुछ इस तरह से की जाती है: ये इन सबसे क्लीन और सबसे बेहतरीन इंजीन माना जाता है। इसमें -253 डिग्री सेंटिग्रेड पर जमाया गया लिक्विड हाइड्रोजन और -183 डिग्री सेंटिग्रेड पर जमाए गए ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जाता है| जब इस इंजन में ईंधन जलता है तो सिर्फ भाप बचती है| LVM 3 रॉकेट में लगे CE 20 नाम के इस क्रायोजेनिक इंजन को इसरो ने बनाया है, जो चंद्रयान 3 को चाँद तक ले जाएगा| लिहाजा इस इंजन को अच्छी तरह से जांच परख लिया गया है और अब यह मिशन चंद्रयान को कामयाब बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार है|
प्रधानमंत्री मोदी का सपना है कि भारत स्पेस तकनीक की सुपर पावर बनेगा| लिहाजा चंद्रयान 3 मिशन के बाद इसरो अंतरिक्ष में स्वदेशी तकनीक से मानव मिशन भेजने की तैयारी कर रहा है, जिसे गगनयान नाम दिया गया है| उम्मीद जताई जा रही है कि 2024 के अंत में इसरो का HLVM 3 रॉकेट किसी भारतीय को अंतरिक्ष के सफर पर ले जाएगा| चंद्रयान से लेकर गगनयान तक की ये मिशन भारत की अंतरिक्ष कार्यक्रम की उस कहानी को आगे बढ़ा रहे हैं, जो बैलगाड़ी और साइकल के सफर से शुरू हुई थी|
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