शीतला अष्टमी 2023: हिंदू धर्म में, शीतला माता को शक्ति का एक स्वरुप माना जाता है| लोकप्रिय रूप से वह उत्तर भारत में चेचक की हिंदू देवी हैं और खतरनाक बीमारी को फैलाने और इसे ठीक करने के लिए जानी जाती हैं| ग्रामीण भारत में, उन्हें देवी पार्वती और दुर्गा का अवतार भी माना जाता है, जो शक्ति के दो रूप हैं| देवी शीतला तमिलनाडु में मरियम्मन के नाम से लोकप्रिय हैं| वह निस्संदेह ही सबसे लोकप्रिय ग्रामीण देवियों में से एक है और लाखों लोगों की कुलदेवी हैं| आइये जानते हैं कैसा है शीतला माता का स्वरुप और इस साल कब पड़ रही है शीतला अष्टमी:
शीतला माँ का स्वरुप
देवी शीतला लाल रंग की पोशाक पहनती हैं| उनका वाहन गधा है| शीतला माता अपने एक हाथ में शीतल पेय, दाल के दाने और रोगानुनाशक जल का कलश रखती हैं, तो दूसरे हाथ में झाड़ू और नीम के पत्ते धारण करती हैं| प्रतीकात्मक रूप से, देवी शीतला स्वच्छता की आवश्यकता पर जोर देती है|
शीतला अष्टमी 2023 कब है
हिंदू पंचांग के अनुसार होली के पर्व के 8 दिन बाद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता शीतला की पूजा होती है, जिसे बासौदा पूजा या शीतला अष्टमी भी कहा जाता है| इस साल शीतला अष्टमी, 15 मार्च 2023, बुधवार के दिन मनाई जायेगी| अष्टमी तिथि 14 मार्च 2023 की शाम 08 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 15 मार्च 2023 की शाम 06 बजकर 45 मिनट पर इसकी समाप्ति होगी| शीतला सप्तमी का दिन 14 मार्च 2023, मंगलवार रहेगा|
हर साल चैत्र महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि को शीतला देवी की पूजा की जाती है| शीतला अष्टमी को 'बसौड़ा पूजा' के नाम से भी जाना जाता है| शीतला अष्टमी के एक दिन पहले शीतला माता के भोग को तैयार किया जाता है और दूसरे दिन बासी भोग को माता शीतला को चढ़ाया जाता है|
माना जाता है कि शीतला देवी की पूजा अर्चना से चेचक रोग नहीं होता| छोटे बच्चों को चेचक से बचाने के लिए विशेषकर शीतला देवी की पूजा की जाती है| शीतला माता को चेचक रोग की देवी भी कहते हैं| मान्यताओं के अनुसार इस अष्टमी पर शीतला माता की पूजा करने से चेचक, चिकन पॉक्स और खसरा जैसी बीमारियां ठीक होती है और व्यक्ति निरोगी रहता है| आरोग्य भरा जीवन प्राप्त करने के लिए लोग इस दिन माता शीतला की पूजा करते है| पूजा के दौरान कथा पढ़ने का भी विधान है|
शीतला माता के व्रत का महत्त्व
शास्त्रों में शीतला माता को आरोग्य प्रदान करने वाली देवी बताया गया है| माना जाता है कि इस दिन जो महिला शीतला माता व्रत रखती हैं और उनका श्रद्धापूर्वक पूजन करती है, उनके घर में धन, धान्य आदि की कोई कमी नहीं रहती| उनका परिवार और बच्चे निरोगी रहते हैं| उन्हें बुखार, खसरा, चेचक, आँखों के रोग आदि समस्याएं नहीं होती|
शीतला माता के व्रत की पूजा विधि
शीतला माता के व्रत की पूजा के लिए चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी की शाम को रसोई की साफ सफाई करने के बाद माता के लिए भोग और घरवालों के लिए भोजन तैयार करें| अगले दिन यानि अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर शीतला माता का ध्यान कर हाथ में पुष्प, रक्षा रोली, जल और दक्षिणा लेकर व्रत का संकल्प लें| इसके बाद विधि विधान से माता का पूजन करें| उन्हें रोली, गंगा जल, पुष्प, प्रसाद आदि अर्पित करें| फिर बांसी हलवा पूरी और खीर आदि का भोग लगाएं| शीतला माता का पाठ करें, व्रत कथा पढ़ें और माता से अपने परिवार को निरोगी रखने की प्रार्थना करें|
शीतला माता को शीतलता प्रदान करने वाली माता कहा गया है, इसलिए माता को भोग के रूप में जो कुछ भी समर्पित किया जाता है, उसमें पूरी तरह शीतलता रखी जाती है| इस कारण इसको शीतला अष्टमी के एक रात पहले ही बनाकर रख लिया जाता है| माता के भक्त भी प्रसाद स्वरूप ठंडा भोजन ही अष्टमी के दिन ग्रहण करते है| इस दिन घरों में चूल्हा जलाना वर्जित होता है|
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो शीतला अष्टमी के बाद ग्रीष्मकाल अपना ज़ोर लगाना शुरू कर देता है| इस दिन को शीतकाल के आखिरी दिन के रूप में भी मनाया जाता है| इस दिन से भोजन खराब होना शुरू हो जाता है| शीतला अष्टमी के दिन माता रानी को सप्तमी के बने बासी भोजन का भोग लगाकर, लोगों को विशेष संदेश दिया जाता है कि आज के बाद पूरे ग्रीष्मकाल में ताजे भोजन को ही ग्रहण करना चाहिए|
देवी शीतला माता की कहानी
पुराणों के अनुसार शीतला माता की रचना भगवान ब्रह्मा ने की थी| ब्रह्मा जी ने कहा था कि उन्हें पृथ्वी पर देवी के रूप में पूजा जाएगा| एक साथी की मांग पर ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान शिव के पास जाने को कहा| भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया और ज्वार असुर की उत्पत्ति करी| कहा जाता है कि ज्वारासुर की रचना भगवान शिव के पसीने से हुई थी|
देवलोक से देवी शीतला अपने हाथ में दाल के दाने लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती लोक पर राजा विराट के राज्य में रहने आई| लेकिन, राजा विराट ने देवी शीतला को राज्य में रहने से मना कर दिया| राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हो गई| शीतला माता के क्रोध की अग्नि से राजा की प्रजा के लोगों की त्वचा पर लाल लाल दाने हो गए| लोगों की त्वचा गर्मी से जलने लगी थी| तब राजा विराट ने अपनी गलती पर माफी मांगी| इसके बाद राजा ने देवी शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया, तब माता शीतला का क्रोध शांत हुआ और सभी प्रभाव चमत्कारिक रूप से ठीक हो गए| तब से माता देवी को ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है|
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