Dev Diwali 2022: देव दिवाली का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है| देव दिवाली प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है| देव दिवाली के दिन श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाते हैं और शाम को मिट्टी के दीपक या दीये जलाते हैं| शाम ढलते ही गंगा के रिवरफ्रंट के सभी घाटों की सीढ़ियों को लाखों मिट्टी के दीयों से जगमगाया जाता है| गंगा के घाट ही नहीं देव दिवाली पर बनारस के सभी मंदिर लाखों दीयों से जगमगाते हैं| आइये जानते हैं इस साल देव दिवाली कब है (Dev Diwali 2022 Date) और क्या है इस पर्व का महत्त्व:
देव दिवाली कब है (Dev Diwali 2022 Date)
देव दिवाली (Dev Diwali) पवित्र शहर वाराणसी में हर साल मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध उत्सव है, जो कार्तिक अमावस्या के दिन मनाई जाने वाली दिवाली के पंद्रह दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है| देव दिवाली को 'देव दीपावली' (Dev Deepawali), त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है| मान्यता है कि देव दिवाली के दिन भगवान शिवजी ने त्रिपुरासुरों का वध किया था| धार्मिक ग्रथों के अनुसार इसी पावन दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया था|
माना जाता है कि इस दिन देवता अपनी प्रसन्नता दिखाने के लिए काशी की पवित्र भूमि पर गंगा घाट पर आकर दीपक जलाते हैं और दिवाली मनाते हैं| देवी-देवताओं के सम्मान के लिए इस दिन वाराणसी का पूरा घाट मिट्टी के दीयों से सजाया जाता है| माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है| इतना ही नहीं इस दिन नदी में दीपदान करने से लंबी आयु की प्राप्ति भी होती है|
इस साल कार्तिक पूर्णिमा 07 नवंबर 2022, सोमवार के दिन पड़ रही है, इसलिए इसी दिन देव दिवाली का पर्व मनाया जाएगा| प्रदोष काल में पूजा करने का शुभ मुहूर्त शाम 05:14 से 07:49 तक रहेगा| पूर्णिमा तिथि 07 नवंबर 2022 को शाम 04 बजकर 15 मिनट पर शुरू होकर अगले दिन 08 नवंबर 2022 की शाम 04 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी|
देव दिवाली का महत्त्व (Dev Diwali Significance)
कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया था तथा इसी पावन दिन भगवान शिव ने तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली के त्रिपुरों का नाश किया था| त्रिपुरों का नाश करने के कारण ही भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी भी प्रसिद्ध है| शिवजी के त्रिपुरारी बनने यानी त्रिपुरासुर को मारने पर देवताओं को आनंद देने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है|
कार्तिक पूर्णिमा के दिन यानि देव दिवाली के दिन गंगा में स्नान और दीप दान करने का विशेष महत्व है| इस दिन नदी, सरोवर, तालाब आदि के तट पर दीप जलाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है| माना जाता है कि देव दिवाली के दिन सभी देवता धरती पर आते हैं| इसलिए दीपावली पर्व की तरह ही देव दिवाली के दिन भी घर पर, घर की चौखट पर दीप जलाना विशेष फलदायी होता है|
देव दिवाली का महापर्व पुरे भारतवर्ष में मनाया जाता है लेकिन वाराणसी में गंगा नदी के तट पर मनाई जाने वाली देव दीपवाली का विशेष महत्व है जिसे देखने देश-विदेश से लोग आते हैं| ऐसी मान्यता है कि इस दिन सभी देवता गंगा नदी में पवित्र स्नान करने के लिए काशी आते हैं| इसी ख़ुशी में यहाँ देवताओं का स्वागत-सत्कार और गंगा पूजन किया जाता है|
वैसे तो देव दीपावली गंगा घाटों पर मनाई जाती है, लेकिन देव दीपावली का संबंध सीधे भगवान शिव से जुड़ा है इसलिए काशी में इसका विशेष महत्त्व है| हर वर्ष देव दीपावली पर्व पर काशी लाखों दीपों से जगमगा उठती है| देव दीपावली के महापर्व पर दशाश्वमेघ घाट की गंगा आरती बहुत अनोखी और मनमोहक होती है|
देव दिवाली के दिन भगवान शिवजी के साथ भगवान विष्णु जी की पूजा का विधान है| कहां जाता है कि पूर्णिमा के दिन तुलसी जी का बैकुंठ धाम में आगमन हुआ था इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी माता जी की पूजा का विशेष रूप से महत्व बताया गया है| कार्तिक पूर्णिमा के दिन सिख धर्म के संस्थापक, गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था इसीलिए कार्तिक पूर्णिमा को गुरु पर्व के रूप में भी मनाया जाता है|
देव दिवाली की कथा (Dev Diwali Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में महा दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे तारकाक्ष, कमलाक्ष तथा विद्युन्माली| जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्र बहुत दुखी हुए|उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या की|
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए| तब उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा| लेकिन ब्रह्मा जी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा| तब उन तीनों ने ब्रह्मा जी से कहा की आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाएं| हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहे| एक हज़ार वर्ष बाद हम एक जगह आकर मिले| उस समय जब हमारे तीनों नगर मिलकर एक हो जाये तब जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके वही हमारी मृत्यु का कारण बने| ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान दे दिया|
ब्रह्मा जी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष तथा विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए| ब्रह्मा जी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन पुरों का निर्माण किया| उनमें से एक सोने का, एक चांदी का तथा एक लोहे का था| सोने का पूर तारकाक्ष का, चांदी का कमलाक्ष का तथा लोहे का पुर विद्युन्माली का था|
अपने पराक्रम से इन तीनों भाइयों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया| इन तीनों महादैत्य से घबराकर इंद्र तथा सभी देवतागण भगवान शंकर की शरण में गए| देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव तीनों पुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए|
विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया| चन्द्रमा तथा सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि उस रथ के घोड़े बने| हिमालय धनुष बने और शेषनाग उस धनुष की प्रत्यंचा बने| स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्नि देव उस बाण की नोक बने| उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए निकले तो दैत्यों में हाहाकार मच गया| दैत्यों तथा देवताओं के मध्य भयंकर युद्ध छिड़ गया| जैसे ही तीनो पुर एक सीध में आए तब भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया| त्रिपुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे| जिसके उल्लास में देवताओं ने खुश होकर दीपक जलाए और दिवाली मनाई|
कार्तिक पूर्णिमा में भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की पूजा का विधान है| एक और पौराणिक कथा के अनुसार शंखासुर नामक राक्षस ने त्रिलोक पर अपना आधिपत्य जमा लिया था| तब शंखासुर के अत्याचारों से परेशान होकर इंद्र तथा सभी देवतागण भगवान विष्णु के पास पहुंचे| देवताओं को उनका वैभव लौटाने और शंखासुर का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेने का फैसला किया| जब शंखासुर को पता चला कि सभी देवता भगवान विष्णु से सहायता मांगने गए है, तब उसने देवताओं की शक्ति के स्रोत वेद मंत्रों को हरने का प्रयास किया| इसके बाद उसने स्वयं को बचाने के लिए समुद्र में प्रवेश किया, लेकिन भगवान विष्णु के तेज से वह बच नहीं पाया और भगवान विष्णु ने अपने दिव्य नेत्रों से शंखासुर का पता लगा लिया|
भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर शंखासुर का वध कर दिया और वेद मन्त्रों की रक्षा करते हुए देवताओं को उनका मान सम्मान तथा वैभव वापस लौटाया| अपने मान सम्मान तथा वैभव को पुनः प्राप्त करके देवता बहुत प्रसन्न हुए और इसी खुशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवताओं ने दीवाली मनाई|
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