Pithori Amavasya 2024: हिन्दू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्त्व रहता है| साल में अगस्त-सितम्बर माह में पिठोरी अमावस्या पड़ती है| आइये जानते हैं पिठोरी अमावस्या 2024 कब है और क्या है पिठोरी अमावस्या कथा:
पिठोरी अमावस्या कब है | Pithori Amavasya 2024 Date
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) महीने में अमावस्या के दिन पिठोरी अमावस्या मनाई जाती है| इसे भाद्रपद अमावस्या भी कहते हैं| इस वर्ष भाद्रपद माह में पड़ने वाली यह अमावस्या 02 सितम्बर 2024, सोमवार के दिन है| अमावस्या की यह तिथि की शुरुआत 02 सितम्बर 2024 को सुबह 05 बजकर 21 मिनट पर होगी और यह अगले दिन 03 सितम्बर 2024 को सुबह 07 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी|
इस दिन पंडित लोग वर्ष भर के कर्म-कांडों के लिए 'कुशा' नामक घास को नदी घाटियों को उखाड़ कर घर लेकर आते हैं इसलिए इस अमावस्या को कुशोपाटनी अमावस्या भी कहते हैं| कुशा को देवताओं का श्रृंगार माना जाता है| इस दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है| इस अमावस्या का व्रत विवाहित माताओं द्वारा अपने बच्चों की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है| पिठौरी अमावस्या की पूर्व संध्या पर, विवाहित महिलाएं और मुख्य रूप से माताएं अपने बच्चों की भलाई और लंबी आयु के लिए चौंसठ देवियों की पूजा करती हैं| पहले के समय में, 64 देवी-देवताओं की मूर्तियों को पीठ (आटे) से बनाया जाता था और उन्हें विशेष भोजन भेंट किया जाता था| इस कारण भाद्रपद अमावस्या को पिठोरी अमावस्या भी कहा जाता है|
पिठोरी अमावस्या कथा और महत्व
भाद्रपद अमावस्या का बहुत अधिक महत्त्व होता है और इसे कुशग्रहणी, कुशोपाटनी, पोलाला या पिठोरी अमावस्या भी कहा जाता है| हिंदू धर्मों में मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से वीर और स्वस्थ संतान की प्राप्ति होती है| इसके साथ ही महिलाएं अपनी संतान की लम्बी आयु के लिए पिठोरी अमावस्या पर माँ दुर्गा की आराधना करती हैं और व्रत रखती हैं| पिठोरी अमावस्या की पूजा के बाद पिठोरी अमावस्या की कथा सुनाई जाती है| कथा इस प्रकार है|
एक परिवार में सात भाई थे| सबका विवाह हो चूका था| सबके छोटे-छोटे बच्चे भी थे| परिवार की सुख-समृद्धि के लिए सातों भाइयों की पत्नियाँ पिठोरी अमावस्या का व्रत रखना चाहती थी| लेकिन जब पहली बार पिठोरी अमावस्या आयी तो बड़े भाई की पत्नी ने व्रत रखा और उसके बेटे की मृत्यु हो गयी| दूसरे साल एक और बेटे की मृत्यु हो गयी| यह क्रम सात साल तक ऐसे ही चलता रहा| जब सातवें साल बेटे की मृत्यु हुई तो बड़े भाई की पत्नी ने मृत पुत्र का शव कहीं छिपा दिया| गांव की कुल देवी माँ पोलाराम्मा उस समय गाँव की रक्षा के लिए पहरा दे रही थी| जब उन्होंने दुखी माँ का रोना सुना तो वह वजह जानने के लिए बड़ी उत्सुक हुई और उन्होंने बड़े भाई की पत्नी से दुखी होने का कारण पूछा|
बड़े भाई की पत्नी ने सारा किस्सा सुनाया तो देवी पोलाराम्मा को उस पर दया आ गयी| उन्होंने दुखी माँ से कहा कि वे उस जगह पर हल्दी छिड़क दे जहाँ-जहाँ उसके बेटों का अंतिम संस्कार हुआ है| माँ ने ऐसा ही किया और जब वह घर लौटी तो उसने सभी पुत्रों को जीवित देखा| माँ की ख़ुशी का ठिकाना न रहा| तभी से उस गाँव की हर माँ अपने बच्चों की लम्बी आयु के लिए पिठोरी अमावस्या का व्रत रखने लगी|
हिन्दू धर्म में अमावस्या के दिन पितृ तर्पण करने का विशेष विधान है| पिंडदान और पितृ दर्पण कुछ महत्वपूर्ण कार्य हैं जो पिठौरी अमावस्या की पूर्व संध्या पर किए जाते हैं| जो व्यक्ति अपने पितृ देवताओं को याद करके निमित्त दान आदि करते हैं, उनके घर परिवार से पितृ दोष ख़त्म हो जाता है|
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