Jagar in Uttarakhand: उत्तराखंड की जागर पूजा पूर्वजों की आध्यात्मिक पूजा का एक अनुष्ठान रूप है, जिसमें पितरों, क्षेत्रपाल, देवताओं और स्थानीय कुल-देवताओं को उनकी सुप्त अवस्था से जगाया जाता है और उनसे कृपा या उपाय मांगा जाता है| यह उत्तराखंड के कुमाऊं, गढ़वाल के साथ नेपाल में भी प्रचलित है| आइये जानते हैं जागर (Jagar in Uttarakhand) के बारे में कुछ जानकारी:
जागर शब्द का मतलब क्या होता है (Jagar Means in Hindi)
जागर शब्द संस्कृत मूल, जग से आया है, जिसे वैदिक संस्कृत में जागर कहा गया है, जिसका अर्थ है "जागना"| वैदिक काल से ऋषि मुनि जिस प्रकार किसी दोष, बीमारी आदि का निवारण करने के लिए यज्ञ करते थे, और जैसे आज भी देवी-देवताओं के लिए जागरण आयोजित होते हैं, उसी प्रकार उत्तराखंड की पहाड़ियों में जागर के माध्यम से लोग अपने देवताओं को जागृत करते हैं और उनकी शक्ति का लाभ लेते हैं|
जागर क्या होता है (What is Jagar)
यह अनुष्ठान दैवीय न्याय के विचार से जुड़ा है और किसी अपराध के लिए तपस्या करने या किसी अन्याय के लिए देवताओं से न्याय प्राप्त करने के लिए किया जाता है| जागर में रात्रि के तय समय में जलती आग के आसपास, गाँव और परिवार वाले, जगरिया और वाद्य यंत्रों की मदद से शक्ति का आह्वान करते हैं| इसके बाद जागर में मौजूद डंगरियों के शरीर में शक्ति का आगमन होता है| तरंगों के रूप में आई यह शक्ति उनके शरीर में कम्पन पैदा करती है| उसके बाद दास या जगरिया की मदद से परिवार को अपने द्वारा खोजे गए प्रश्नों के हल और उपचार मिलता है|
जागर में कौन हिस्सा लेता है?
उत्तराखंड में लगने वाली जागर में जगरिया (Jagariya), डंगरिया (Dangariya) और स्यानकर होते हैं| जहाँ स्यानकर वह व्यक्ति होता है जिसने अपनी समस्याओं के लिए दैवीय हस्तक्षेप की तलाश के लिए जागर का आयोजन अपने घर पर किया होता है| वहीँ जागर के अनुष्ठानों का नेतृत्व जगरिया द्वारा किया जाता है| जगरिया गाथागीत के गायक होते हैं जो देवताओं का आह्वान करते हैं| इनके अलावा डंगरिया वह माध्यम होते हैं, जिनके शरीर का उपयोग देवताओं द्वारा अवतार लेने के लिए किया जाता है| डांगरिया शब्द कुमाऊंनी शब्द डांगर से आता है, जिसका अर्थ होता है रास्ता| डंगरिया वही है जो देवताओं को रास्ता दिखाता है|
कैसे जागृत किये जाते हैं पितृ और कुल देवता
संगीत के माध्यम है जिसके माध्यम से देवताओं का आह्वान किया जाता है| इसमें डमरू, थाली, ढोल, दमाऊ, हुड़का आदि वाद्य यंत्रों का उपयोग करते हैं| गायक या जगरिया, महाभारत या रामायण जैसे महान महाकाव्यों के संकेतों के साथ देवताओं का गीत गाते हैं, जिसमें भगवान के आह्वान किए जाने के कारनामों और कारनामों का वर्णन किया जाता है|
जगरिया के पास लोकगीत या लोकगाथाएँ गाने की विशेष कला होती है जो अपने गीतों में छंद, रस के अनुसार पितरों, कुल देवी-देवताओं का आह्वान करते हैं| कुछ प्रमुख जगरिया जैसे प्रीतम भरतवाण, बसंती देवी को भारत सरकार द्वारा पारम्परिक लोक कला के क्षेत्र में पद्मश्री से भी नवाजा जा चूका है|
समय के साथ विकसित होने के बाद, जगर गायन एक कला के रूप में बदल गया है जो बहुत पोषित है, और अपनी संस्कृति और विरासत को अगली पीढ़ी के लिए संजोने में जागर का महत्वपूर्ण योगदान रह सकता है|
जहाँ आज भी उत्तराखंड की पहाड़ियों में पहाड़ी लोग देवताओं, पितरों को जागृत करने और मसान पूजा के लिए जागर आयोजित करते हैं वहीँ व्यापक द्रिष्टी से जागर को स्थानीय विरासत के एक सांस्कृतिक और संगीत घटक के रूप में देखा जाता है जिसे संरक्षण की आवश्यकता महसूस हुई है|
जागर का महत्त्व (Significance of Jagar in Uttarakhand)
उत्तराखंड के लोगों द्वारा जागर के आयोजन के पीछे दैवीय न्याय और कर्मों के फल पर उनकी गहरी आस्था है| उनकी मान्यता है कि बुरे कर्मों को असर कर्ता पर जाता है और अंत में देवताओं द्वारा न्याय दिया जाता है| जागर के इस धार्मिक पहलू के अलावा जागर गीत और गायन शैलियां उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं| जागर के दौरान गाए जाने वाले विभिन्न देवताओं के गाथागीत कुमाऊंनी भाषा और गढ़वाली भाषा के विशाल लोक साहित्य का एक हिस्सा हैं| इन गाथागीतों को इस समय संरक्षण के लिए एकत्र करने का कार्य शुरू हुआ है|
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