भिटोई । Bhitauli Festival 2023 in Uttarakhand | भिटौली में बेटी-बहन के घर जरूर जाएँ

Bhitauli 2023: भारत में वर्ष में कई त्यौहार मनाये जाते हैं| लेकिन उनमें से कुछ त्यौहार ऐसे हैं जिन्हें किसी क्षेत्र विशेष में मनाया जाता है| ऐसा ही उत्तराखंड राज्य में मनाया जाने वाला त्यौहार है भिटौली (Bhitauli Festival in Uttarakhand)| भिटौली/भिटोई का क्या अर्थ है और इसे कब मनाते हैं, आइये जानते हैं:

bhitauli festival in uttarakhand

भिटौली का क्या अर्थ है  (Bhitauli Meaning)

भिटौली का अर्थ होता है भेंट देना या भेंट करना| इसमें विवाहित स्त्री, विशेषकर नई दुल्हन अपने ससुराल में बैठकर अपने मायके से आने वाली भेंट का बड़ी बेसब्री से इंतजार करती है| इसमें मायके से भाई या पिता अपनी बेटी या बहन के लिए पकवान, मिठाई, कपड़े आदि बनाकर उसको भेंट स्वरुप देने के लिए जाता है, जिसको वह अपने पड़ोस, गांव में बांटती है| 


भिटौली का त्यौहार कब मनाते हैं (Bhitauli Festival in Uttarakhand)

भिटौली का त्यौहार उत्तरखंड राज्य में मनाया जाता है| इसमें चैत्र के महीने में जो हिन्दू कैलेंडर का पहला महीना भी होता है, उसमें अपने घर की बेटियों को उनके ससुराल में मिलने जाते हैं और भेंट स्वरुप कई तरह के पकवान ले जाते हैं| 


भिटौली का महत्त्व (Bhitauli Significance)

हम सब एक सामाजिक प्राणी हैं और भिटौली जैसा त्यौहार आपसी प्रेम बनाए रखने का काम करता है| इसमें माता-पिता या भाई अपने घर की बेटी को शादी में ससुराल विदा करने के बाद उससे मिलने जाते हैं| वे अपने साथ भिटौली भी ले जाते हैं, जिसे स्त्रियां अपने आस-पड़ोस में बांटती है और उन्हें ख़ुशी-ख़ुशी बताती है कि यह भिटौली है और मेरे माता-पिता या भाई के द्वारा लाई गई है|

वर्तमान में भिटौली की परंपरा ख़त्म होती जा रही है| जहाँ यह सक्रिय भी है वहां भी इसे एक भेंट देने या उपहार देने में सिमटाया जा रहा है| अक्सर देखा जाता है कि मायके से पैसे ट्रांसफर करके यह बोल दिया जाता है कि अपने आस-पड़ोस में भिटौली बाँट देना| भिटौली जैसा त्यौहार हमारी संस्कृति और परंपरा को जिन्दा रखने में बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए माता-पिता या भाई इस दिन अपने बहन-बेटी से मिलने जरूर जाएं| 

bhitauli

भिटौली की कहानी (Bhitauli Story)

इस त्यौहार के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं| उनमें से एक इस प्रकार है:

बहुत समय पहले एक गांव में दो भाई-बहन रहा करते थे| बड़ी बहन का नाम देबुली और छोटे भाई का नाम नर्या था| दोनों में बहुत प्रेम था| देबुली अपने छोटे भाई पर जान छिड़कती थी और नर्या भी अपनी बहन के बिना नहीं रह पाता था| दोनों साथ खेलते, उठते-बैठते थे| समय बीतता गया और बचपन को छोड़ दोनों बड़े हो गए| देबुली की शादी उसके घरवालों ने उनके गांव से दूर एक दूसरे गांव में तय कर दी| देबुली अपने ससुराल चली गई और ससुराल बहुत दूर होने के कारण उसका धीरे-धीरे अपने मायके आना कम होता चला गया| 

नर्या अपनी बहन की याद में उदास रहने लगा| उधर देबुली का भी मन अपने मायके की तरफ रहता था| वह अक्सर सपने में देखती कि उसका भाई नर्या उससे मिलने आ रहा है| नर्या अपनी माँ से जिद्द करता कि इतना समय हो गया दीदी हमसे मिलने क्यों नहीं आ रही है| माँ कहती है-"बेटा दीदी का ससुराल बहुत दूर है इसलिए वह तुमसे मिलने नहीं आ पाई होगी|" नर्या बोलता है-"माँ क्या मैं दीदी से मिलने नहीं जा सकता|" इसपर माँ उसे समझाती है कि "बेटा तू अभी बहुत छोटा है और दीदी का सुसराल बहुत दूर!! रास्ते में पहाड़ है, जंगल है, जंगली जानवर हैं, तू कैसे जाएगा?"| नर्या इसके बाद कुछ नहीं कह पाता और चुप हो कर चले जाता|

इसी प्रकार दिन बीतते गए और देबुली अपने मायके की सोच में उदास रहती और नर्या दीदी की याद में रोते हुए सो जाया करता| एक बार नर्या ने सपना देखा और सोकर उठते ही कहा-"माँ मैं अपनी दीदी से मिलने जाऊंगा, वह बहुत उदास है और मुझे याद कर रही है|" अब माँ कब तक उसकी जिद्द के आगे ठहर पाती, और उन्होनें कह दिया-"ठीक है कल सुबह जाना, मैं कुछ पकवान बना कर रखती हूँ. तू अपनी दीदी को भेंट दे देना और शाम को जल्दी आ जाना|"

अगले दिन उजाला होने से कुछ पहले ही नर्या ने भेंट की टोकरी उठाई और ख़ुशी में चल पड़ा| पीछे माँ आवाज लगाती रही-"बेटा सही से जाना, जानवरों से बचकर रहना और शाम को समय पर घर आ जाना|" नर्या उल्लास और चेहरे पर मुस्कान लिए पहाड़, जंगल, नदी, नाले सभी पार कर गया| दोपहर तक जब वह अपनी बहन के घर पहुँचा, तो देखा उसके ससुराल में कोई नहीं है| उसने आसपास देखा पर कोई नहीं दिखा| फिर उसने ऊपर के माले पर जाकर देखा तो उसकी बहन सो रही थी| चैत्र महीने में खेतों में बीज बोने का काम जोर-शोर से चलता है और वैसे भी पहाड़ों में भोर होते ही स्त्रियां पालतू जानवरों के लिए जंगल में घास, लकड़ी बीनने चल पड़ती हैं या फिर खेतों का काम भी सुबह जल्दी शुरू कर देती हैं| और इसी कारण खेतों में शायद दिन भर काम करके देबुली थक गई होगी| 

नर्या ने अपनी दीदी को उठाना उचित नहीं समझा| उसने भेंट की टोकरी नीचे रखी और बहन के पास में चुपचाप जाकर बैठ गया और उसके उठने का इंतजार करने लगा| समय बीतता गया और शाम करीब आ गई लेकिन उसकी बहन नहीं उठी| नन्हे नर्या को लगा कि उसे शायद वापस चलना चाहिए, क्यूंकि अब अँधेरा हो चला था| उसने टोकरी वहीँ छोड़ी और चला गया|  

देबुली जब उठी तो उसने देखा कि उसके सामने एक टोकरी रखी हुई है जिसमें बहुत सा सामान है| वह दौड़ कर बाहर गयी और पर उसका भाई जा चूका था| देबुली भी समझ गयी कि उसका भाई उससे मिलने आया था पर वह सोती रही| वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी, रोने लगी| आसपास के लोग इकट्ठा हो गए| जब लोगों ने उससे पूछा तो देबुली पागलों की तरह बेहोश अवस्था में बोली-"भै भूखो, मैं सेती"| मतलब भाई भूखा रहा और मैं सोती रही| भै भूखो, मैं सेती की रट लगाते हुए वह बेहोश हो गयी और मर गयी| 

bhitauli ghughuti

कहते हैं इसके बाद उसने घुघुति के रूप में फिर नया जन्म लिया और तब से चैत्र के महीने में वह यही रट लगाती है- भै भूखो, मैं सेती, भै भूखो, मैं सेती| तब से चैत्र के महीने में भिटौली के रूप में इस त्यौहार को मनाते हैं|           


Post a Comment

0 Comments