दत्तात्रेय जयंती 2022: दत्तात्रेय भगवान के जन्मदिवस को दत्ता अथवा दत्तात्रेय जयंती कहा जाता है| हिन्दू धर्म में तीनों देवों का सबसे उच्च स्थान होता है| धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का स्वरुप माना जाता है| दत्तात्रेय में ईश्वर एवं गुरु दोनों रूप समाहित हैं, जिस कारण इन्हें श्री गुरुदेव दत्त भी कहा जाता है| आइये जानते हैं इस वर्ष दत्तात्रेय जयंती कब है (Dattatreya Jayanti 2022 Date) और क्या है इसका महत्व और दत्तात्रेय कथा:
दत्तात्रेय जयंती कब है (Dattatreya Jayanti 2022 Date)
दत्तात्रेय जयंती का महत्व
मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय के व्रत करने एवं उनके दर्शन करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं| सर्वोच्च ज्ञान के साथ-साथ जीवन के उद्देश्य और लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलती है| इसी के साथ सभी चिंताओं के साथ अज्ञात भय से छुटकारा मिलता है और नेक रास्ते पर चलने में मदद मिलती है| भगवान दत्तात्रेय जयंती के दिन भक्त सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्नान करते हैं और फिर दत्ता जयंती का व्रत रखने का अनुष्ठान करते हैं| पूजा के समय मिठाई, अगरबत्ती फूल और दीपक चढ़ाने चाहिए और पवित्र मन्त्रों और धार्मिक गीतों का पाठ करना चाहिए|
पूजा के समय दत्ता भगवान की प्रतिमा पर हल्दी पाउडर, सिंदूर और चन्दन का लेप लगाएं| आत्मा और मन की शुद्धि और ज्ञान के लिए भक्तों को "ॐ श्री गुरु दत्तात्रेय नमः" मन्त्र का पाठ करना चाहिए|
मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन दत्तात्रेय भगवान का जन्म होने के कारण विशेष महत्त्व रहता है| ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य प्रातःकाल काशी में गंगा जी में स्नान करते थे| इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका दत्त भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है|
जय श्री गुरुदेव दत्त
भगवान दत्तात्रेय भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव से मिलकर पवित्र त्रिमूर्ति के अवतार हैं| दत्तात्रेय पुराणों में प्रसिद्ध संत हैं| वह अनसूया और महर्षि अत्रि के पुत्र थे| दत्तात्रेय नाम को दो शब्दों से विभाजित किया जा सकता है: दत्ता (अर्थात दाता) और अत्रि (ऋषि अत्रि)| पर्यावरण शिक्षा के गुरु माने जाने वाले भगवान दत्तात्रेय ने अपने आसपास के अवलोकन से ज्ञान प्राप्त किया जिससे उन्हें 24 गुरु मिले| ये गुरु सांसारिक आसक्तियों की समस्याओं की व्याख्या करते हैं और सर्वोच्च आध्यात्मिक आत्म साक्षात्कार की ओर मार्ग दिखाते हैं| श्री दत्तात्रेय स्तोत्र का जाप करने से मानसिक स्थिति को शांत करने और घबराहट को रोकने में मदद मिलती है|
श्री दत्तात्रेयस्तोत्रम् (Dattatreya Stotram)
।। श्रीगुरुदेव दत्त ।।
दत्तात्रेय भगवान की जन्म कथा
भगवान दत्तात्रेय सप्तऋषि अत्रि एवं माता अनुसूया के पुत्र हैं| माता अनुसूया एक पतिव्रता नारी थी| इन्होनें ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के समान बल वाले एक पुत्र के लिए कठिन तपस्या की थी| उनकी इस कठिन साधना के कारण तीनों देव इनकी प्रशंसा करते थे| जिस कारण तीनों देवियों को माता अनुसूया से ईर्ष्या होने लगी थी| तब तीनों देवियों के कहने पर त्रिदेव माता अनुसूया की परीक्षा लेने के लिए उनके आश्रम पहुंचे| तीनों देव रूप बदलकर अनुसूया के पास पहुंचे और उनसे भोजन कराने को कहा| माता ने हाँ बोल दिया, लेकिन तीनों ने कहा कि वे भोजन तब ही करेंगे जब वे निर्वस्त्र होकर शुद्धःता से उन्हें भोजन परोसेंगी| माता ने कुछ क्षण रूककर हामी भर दी| माता ने मन्त्र उच्चारण कर तीनों त्रिदेवों को तीन छोटे-छोटे बालकों में परिवर्तित कर दिया और तीनों को बिना वस्त्र स्तनपान कराया| जब ऋषि अत्रि आश्रम आए तो माता अनुसूया ने सारा वृतांत कह सुनाया, जो कि ऋषि अत्रि पहले से ही जानते थे|ऋषि अत्रि ने मन्त्रों के द्वारा तीनों देवों को एक रूप में परिवर्तित कर एक बालक का रूप दे दिया, जिनके तीन मुख एवं छह हाथ थे| अपने पति को इस रूप में देख तीनों देवियाँ डर जाती हैं| वे ऋषि अत्रि और माता अनुसूया से क्षमा मांगती हैं और अपने पतियों को वापस देने का आग्रह करती हैं| ऋषि तीनों देवों को उनका मूर्त रूप दे देते हैं| इस प्रकार तीनों देव अपने आशीर्वाद द्वारा दत्तात्रेय भगवान को बनाते हैं, जो तीनों देव का रूप कहलाते हैं| इस प्रकार माता अनुसूया परीक्षा में सफल होती हैं और उन्हें तीनों देव के समान पुत्र की प्राप्ति होती है|
0 Comments