जय माँ कुष्मांडा देवी: नवरात्री वर्ष में चार बार मनाई जाती है| इनमें से जहाँ पौष और आषाढ़ माह में पड़ने वाली नवरात्री गुप्त नवरात्र कहलाती हैं वहीँ चैत्र और अश्विन माह में पड़ने वाले नवरात्रे बड़ी धूम-धाम से मनाए जाते हैं| नवरात्री का अर्थ है विशेष रात्रि जब माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है| इनमें से नवरात्री के चौथे दिन (4th day of Navratri) माँ कुष्मांडा की पूजा की जाती है| आइए जानते हैं कब है इस वर्ष नवरात्री की चौथी तिथि और क्या है कुष्मांडा देवी की पूजा विधि, कुष्मांडा देवी कथा और आरती|
माँ कुष्मांडा देवी | 4th Day of नवरात्री (Fourth Navratri)
साल में चैत्र माह और अश्विन माह में आने वाली नवरात्री का विशेष महत्व है और पुरे भारतवर्ष में नवरात्रियों का यह त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है| इस वर्ष यानी 2023 में चैत्र नवरात्री की चौथी तिथि (Fourth Navratri) 25 मार्च और अश्विन नवरात्र की चौथी तिथि (4th Navratri) 18 अक्टूबर 2023 को पड़ रही है|
माँ कुष्मांडा देवी
कुष्मांडा माता ने अपनी मुस्कान से ब्रह्माण्ड की रचना की थी| इसलिए इन्हें सृष्टि की आदि शक्ति के रूप में भी जाना जाता है| कुष्मांडा माता का रूप बेहद ही शांत, सौम्य और मोहक माना जाता है| इनकी आठ भुजाएं हैं, जिसके कारण इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं| इनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र और गदा है| आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जाप की माला है| कुष्मांडा माता शेर पर सवारी करती हैं, जो भक्तों में निर्भयता का संचार करता है|
माँ कुष्मांडा का नाम
माँ कुष्मांडा का नाम तीन अलग-अलग शब्दों से मिलकर बना है| पहला शब्द "कु" जिसका अर्थ है थोड़ा, दूसरा शब्द "ऊष्मा" जिसका अर्थ है ऊर्जा या शक्ति और तीसरा शब्द है अंडा| इस प्रकार कुष्मांडा का अर्थ हुआ एक छोटा सा ऊष्मा का गोला| ऐसा पवित्र गोला जिसने इस समस्त ब्रह्माण्ड की रचना की|
माँ कुष्मांडा मन्त्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः ||
माँ कुष्मांडा की प्रार्थना
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ||
माँ कुष्मांडा की स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||
अर्थात, हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कुष्मांडा देवी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम स्वीकार हो| हे माँ मुझे सभी पापों से मुक्ति प्रदान करें|
माँ कुष्मांडा पूजा विधि
नवरात्र के चौथे दिन सुबह स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर माता कुष्मांडा की विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए| इस दिन सर्वप्रथम कलश की पूजा करनी चाहिए, फिर सभी देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए| उसके बाद एक लकड़ी की चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर माँ कुष्मांडा की प्रतिमा स्थापित करें| इस दिन पूजा में बैठने के लिए हरे रंग का आसन का प्रयोग करना चाहिए और स्वयं नारंगी, भूरे या ग्रे रंग के वस्त्र पहनने चाहिए| इसके बाद माता को जल, फूल, रोली और अक्षत अर्पित करें| माँ कुष्मांडा की पूजा में चमेली के फूल का प्रयोग करना चाहिए| नवरात्री के चौथे दिन (4th day of Navratri) माँ कुष्मांडा को माल-पुए का भोग लगाना चाहिए| इसके बाद धुप-दीप जलाकर माँ की आरती करें और माँ कुष्मांडा के मन्त्र के साथ स्तुति करें| अंत में अपनी मनोकामना माँ कुष्मांडा से बोलें|
माँ कुष्मांडा देवी अपने भक्तों द्वारा प्रतिदिन पूजा किये जाने से उन्हें समृद्धि, शक्तियां, सुख और मोक्ष प्रदान करती हैं| और साथ ही अपने भक्तों के समस्त कष्टों का निवारण करती हैं| माँ कुष्मांडा आध्यात्मिक साधना में अनाहत चक्र (शाश्वत) की प्रतिनिधि हैं, जो योग साधना की चक्र संकल्पना का चौथा चक्र है|
ऐसा कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और हर तरफ अँधेरा ही अँधेरा था तब एक छोटे से ऊर्जा के गोले ने जन्म लिया और वह ऊर्जा का गोला देखते ही देखते चारों तरफ प्रकाशित होने लगा| फिर उस गोले ने नारी का रूप लिया| वह नारी और कोई नहीं बल्कि आदिस्वरूपा, आदि शक्ति कुष्मांडा माता हैं| माँ कुष्मांडा ही ब्रह्माण्ड की रचयिता हैं| इनका निवास स्थान सूर्य मंडल के भीतरी लोक में हैं| इस प्रकार सूर्य मंडल के भीतरी लोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल माँ कुष्मांडा के पास है| माँ कुष्मांडा ने ही त्रिदेवों और त्रिदेवियों की रचना की|
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