जय माता चंद्रघंटा: नवरात्री के पर्व के तीसरे दिन (3rd Day of Navratri) दुर्गा माता के माँ चंद्रघंटा स्वरुप की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है| माँ के इस स्वरुप की सच्चे मन से पूजा करने से रोग दूर होते हैं, शत्रुओं से भय नहीं रहता और लम्बी आयु का वरदान मिलता है| इसके साथ ही माँ आध्यात्मिक शक्ति, आत्मविश्वास और मन में नियंत्रण भी बढ़ाती है| माँ दुर्गा का यह स्वरुप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है| आइये जानते हैं इस वर्ष कब है नवरात्री की तृतीया तिथि (3rd Day of Navratri) जब माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है, और क्या हैं माँ चंद्रघंटा मंत्र और पूजा विधि:
माँ चंद्रघंटा की पूजा | 3rd Day of Navratri कब है?
इस वर्ष चैत्र माह में आने वाली नवरात्रि की तृतीया तिथि 24 मार्च 2023 को पड़ी है| वहीँ अश्विन माह में पड़ने वाली नवरात्रियों के दौरान आने वाली तृतीया तिथि 17 अक्टूबर 2023 को है| इसी दिन माँ दुर्गा के तीसरे स्वरुप चन्द्रघण्टा माता की पूजा की जाती है|
जय माँ चंद्रघंटा
माँ चंद्रघंटा शेर पर सवारी करती है| माँ के माथे यानि मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्द्ध-चन्द्रमा विराजमान है, जो उनका रूप और भी सुन्दर बनाता है| इसी कारण से माँ के इस स्वरुप को चन्द्रघण्टा माता कहा जाता है| चंद्रघंटा रूप में माता का रंग सुनहरा है और उनकी दस भुजाएं हैं| देवी चंद्रघंटा ने नौ भुजाओं में एक त्रिशूल, गदा, बाण, धनुष, तलवार, कमल, जाप माला, वर मुद्रा और एक कमंडल धारण किया हुआ है और दसवे हाथ से वह अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं| माँ चंद्रघंटा अपने भक्तों के प्रति दया और ममता रखते हुए शत्रुओं के लिए भयावह हो सकती हैं|
माँ चंद्रघंटा पूजा विधि
माँ चंद्रघंटा की पूजा के लिए एक लकड़ी की चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर माँ की प्रतिमा स्थापित करें| माँ को केसर और केवड़ा जल से स्नान कराएं| फिर चंद्रघंटा माता को ग्रे या भूरे रंग के वस्त्र पहनाएं और खुद भी इसी रंग के वस्त्र पहनें| माँ चंद्रघंटा को केसर दूध या मखाने की खीर का भोग लगाएं| साथ ही माँ को सफ़ेद कमल या पीले गुलाब की माला अर्पित करें| माता चंद्रघंटा को विशेष रूप से लाल पुष्प चढ़ाएं और फल में लाल सेब चढ़ाएं| फिर अक्षत, रोली लगाने के बाद धूप-दीप जलाकर विधिवत पूजा-अर्चना करें| माँ चंद्रघंटा की पूजा करते समय घंटी जरूर बजाएं| घंटे की ध्वनि से माँ अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं| इसके बाद माँ चंद्रघंटा के मन्त्रों का जाप करें|
माँ चंद्रघंटा के पूजन से भक्तों को मणिपुर चक्र से जागृत होने वाली सिद्धियां स्वतः ही प्राप्त हो जाती हैं, तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है| मणिपुर चक्र यानि नाभि चक्र सात चक्रों में से तीसरा चक्र है जो पाचन तंत्र ठीक रखने के साथ, मानसिक और आध्यात्मिक भावनाओं को भी शांत रखता है|
माँ चंद्रघंटा मंत्र
ॐ देवी चन्द्रघंटायै नमः|
माँ चंद्रघंटा कथा
सती द्वारा स्वयं को पिता के यज्ञ में भस्म करने के बाद भगवान शिव सांसारिक मामलों से अलग हो गए थे, और गहरे ध्यान, और तपस्या के लिए पहाड़ों में सेवा निवृत्त हो गए थे| लेकिन सती के पुनर्जन्म में पार्वती द्वारा भगवान शिव को पाने के संकल्प को देखने के बाद, शिव भगवान विवाह के लिए सहमत हो गए| विवाह के दिन भगवान शिव एक विचित्र रूप में जुलुस के साथ राजा हिमालय के महल में पहुंचे| उनका पूरा शरीर राख से लिपटा हुआ था| उनकी बारात में भूत, सन्यासी, साधु-गण और अघोरी शामिल थे| भगवान शिव और उनके विचित्र विवाह के ऐसे भयंकर जुलुस को देखकर पार्वती माता की माँ और अन्य रिश्तेदार सदमे की स्थिति में आ गए थे| अपने परिवार और भगवान शिव को शर्मिंदगी से बचाने के लिए माँ पार्वती ने खुद को एक भयंकर रूप में बदल लिया और वही रूप है चंद्रघंटा माँ का रूप| इस रूप में माँ का रंग सुनहरा था और उनकी दस भुजाएं थी| चंद्रघंटा के रूप में माँ पार्वती ने शिव भगवान से प्रार्थना की कि वह एक सुन्दर राजकुमार का रूप धारण करें और अपनी शादी के जुलुस को भी बदल दें|
इस प्रकार भगवान शिव सुन्दर राजकुमार का रूप लेने के लिए राजी हो गए और उन्होनें अपने विवाह के जुलुस को भी बदल दिया| अनुष्ठान के अनुसार शिव और पार्वती का विवाह बहुत धूम-धाम से हुआ| शिव विवाह के दिन को हर साल महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है|
एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में देवताओं और असुरों के बीच लम्बे समय तक युद्ध हुआ| उस समय असुरों का स्वामी महिषासुर था और देवराज इंद्र देवताओं के नायक थे| महिषासुर ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग लोक पर कब्ज़ा कर लिया| यह सब देखकर देवतागण परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए त्रिदेवों- ब्रह्मा, महेश और विष्णु भगवान के पास गए| उन्होनें त्रिदेवों को बताया कि महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य, वायु और सभी अन्य देवताओं के अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं को स्वर्गलोक का राजा कह रहा है| महिषासुर के अत्याचार के कारण देवता पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं और अब स्वर्ग में उनके लिए कोई स्थान नहीं है|
यह सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और शंकर जी को बहुत गुस्सा आया और तीनों देवताओं के गुस्से की कोई सीमा नहीं थी| तीनों के मुख से एक तेज निकला और देवताओं के मुख से भी तेज़ निकला| सभी देवताओं का तेज मिलकर एक पुंज बन गया और वहां के देवी का अवतरण हुआ| शिव भगवान ने देवी को त्रिशूल और भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया| इस प्रकार अन्य देवी-देवताओं ने भी माता के हाथों में अस्त्र और शस्त्र सजा दिए| इंद्र ने भी अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घंटा दिया, सूर्य ने अपना तेज और तलवार दी, और हिमालय ने देवी को वाहन के रूप में सिंह दिया| तभी से देवी का नाम चन्द्रघण्टा पड़ा|
सभी अस्त्रों और शस्त्रों से सुशोभित होकर देवी महिषासुर से युद्ध करने को तैयार थी| उनके इस भयंकर रूप को देखकर महिषासुर समझ गया कि अब उसका काल आ गया है| महिषासुर ने अपनी सेना को देवी पर हमला करने को कहा| उस भीषण युद्ध में महिषासुर तो मारा ही गया, साथ में अन्य बड़े दैत्यों का भी संहार माता के हाथों से हुआ| इस तरह माँ चंद्रघंटा ने सभी देवी-देवताओं को असुरों से मुक्ति दिलाई|
माँ चन्द्रघण्टा की प्रार्थना
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता |
प्रसादं तनुते मह्यम चंद्रघण्टेति विश्रुता ||
माँ चन्द्रघण्टा की स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||
माँ चन्द्रघण्टा की आरती
जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम|
पूर्ण कीजो मेरे काम||
चंद्र समान तू शीतल दाती|
चंद्र तेज किरणों में समाती||
मन की मालक मन भाती हो|
चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो||
सुन्दर भाव को लाने वाली|
हर संकट में बचाने वाली||
हर बुधवार को तुझे ध्याये|
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं||
शीश झुका कहे मन की बाता|
पूर्ण आस करो जगदाता||
कांची पुर स्थान तुम्हारा|
करनाटिका में मान तुम्हारा||
नाम तेरा रटू महारानी|
भक्त की रक्षा करो भवानी||
माँ चंद्रघंटा के कृपा से सभी भक्तों के शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं| शेर पर सवार होकर माँ चंद्रघंटा अपने भक्तों को निडरता का अनुभव कराती हैं| माँ चंद्रघंटा की पूजा करते हुए देवी चंद्रघंटा की कथा, ध्यान मंत्र जाप और आरती करने से भक्तों में वीरता, विनम्रता, सौम्यता का विकास होता है|
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