माँ शैलपुत्री: हिन्दू धर्म में नवरात्री पर्व का विशेष महत्व है| यह पर्व दुर्गा माँ के नौ स्वरूपों को समर्पित है और इस दौरान माँ के सभी नौ रूपों की पूजा और व्रत किया जाता है| नवरात्री के पहले दिन (1st day of Navratri) माँ आदिशक्ति के प्रथम स्वरुप माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है| आइये जानते हैं कब है इस वर्ष पहला नवरात्र (1st Navratri) और क्या है माँ शैलपुत्री की पूजा विधि, कथा और महत्व|
शैलपुत्री माता पूजन | 1st नवरात्रि कब है?
वर्ष में चार बार नवरात्री मनाई जाती है, जिसमें से चैत्र माह और अश्विन माह में पड़ने वाली नवरात्री हिन्दू धर्म में धूम धाम से मनाई जाती है| पौष और आषाढ़ माह में आने वाली नवरात्री गुप्त नवरात्री कहलाती हैं| इस वर्ष 2023 में चैत्र माह में पड़ने वाली नवरात्रियों का पर्व 22 मार्च से शुरू है| इसके पहले दिन (1st Navratri) माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से प्रथम स्वरुप माँ शैलपुत्री का पूजन किया जाता है| अश्विन माह में पड़ने वाली पहली नवरात्री 15 अक्टूबर 2023 को है, जिस दिन माँ शैलपुत्री की पूजा अर्चना कर माँ का आशीर्वाद लिया जाएगा|
माँ शैलपुत्री
माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से प्रथम स्वरुप है माँ शैलपुत्री देवी| शैलपुत्री माता, पर्वत राज हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण, इनका नाम शैलपुत्री पड़ा| माँ शैलपुत्री का वाहन वृषभ है इसलिए इन्हें माँ वृषारोड़ा के नाम से भी जाना जाता है| इनके एक हाथ में त्रिशूल है तो दूसरे हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित है| माँ शैलपुत्री को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करुणा और ममता का स्वरुप माना जाता है| शैलपुत्री माता बहुत ही सरल और सौम्य स्वभाव की हैं|
माँ शैलपुत्री की कथा
पूर्व जन्म में माँ शैलपुत्री, राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थी, तब इनका नाम सती था| एक बार राजा दक्ष ने बहुत विशाल यज्ञ का आयोजन किया| उन्होनें सभी राजा-महाराजा, देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया| लेकिन भगवान शिव का अवघड़ रूप होने के कारण उन्हें निमंत्रण नहीं दिया| जब देवी सती को अपने पिता के द्वारा विशाल यज्ञ के आयोजन के बारे में पता चला, तो उनका मन उस यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल होने लगा| तब उन्होनें भगवान शिव से अपनी इच्छा को जाहिर किया| इस पर भगवान शिव ने कहा कि किसी कारण से स्पष्ट हो कि तुम्हारे पिता ने हमें आमंत्रण नहीं किया है| इसलिए तुम्हारा वहां जाना उचित नहीं होगा| देवी सती ने भगवान शिव की बात पर विचार नहीं किया और अपने पिता के वहां जाने के लिए आग्रह किया| माता सती के बार-बार आग्रह करने पर भगवान शिव ने अनुमति दे दी|
जब माता सती वहां पहुंची तो उन्होनें देखा कि उनका कोई भी परिजन उनसे प्रेम पूर्वक बात नहीं कर रहा है| अपने परिजनों का इस प्रकार का व्यवहार देख कर देवी सती को बहुत दुःख हुआ और तब उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि भगवान शिव की कहा न मानकर उनसे कितनी बड़ी गलती हुई है| वह अपने पति भगवान शिव के इस अपमान को सहन न कर सकी और उन्होनें तत्काल ही यज्ञ की यज्ञाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर दिया| इसके बात देवी सती ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया| और देवी शैलपुत्री के नाम से जानी गई|
1st नवरात्री पूजा विधि | जय माँ शैलपुत्री
नवरात्र के पहले दिन लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करके पूजा करनी चाहिए| कलश स्थापना करने से ही माँ शैलपुत्री की पूजा शुरू की जाती है| इसके बाद एक लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर माँ शैलपुत्री की प्रतिमा स्थापित करें| रोली, कुमकुम और अक्षत अर्पित करें| माँ शैलपुत्री को गुड़ैल का फूल प्रिय है| इसके साथ माँ शैलपुत्री को घी का भोग लगाएं| तत्पश्चात माँ शैलपुत्री के मन्त्रों का कम से कम 108 बार जाप करें| मन्त्रों का जाप पूर्ण होने पर माँ के चरणों में अपनी मनोकामना बोलें| इसके बाद माँ शैलपुत्री की आरती कर विधिवत पूजा करें|
माँ शैलपुत्री की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख आता है| जिन कन्याओं का विवाह नहीं हो रहा है, वह भी माँ शैलपुत्री की पूजा करके योग्य वर की प्राप्ति कर सकती हैं| माँ शैलपुत्री की पूजा करके विभिन्न होती है| शैलपुत्री माता सौम्य स्वभाव की हैं और भक्तों की सभी मनोकामना शीघ्र पूरी करती हैं|
माँ शैलपुत्री मन्त्र
ॐ शं शैलपुत्री देव्यैः नमः |
माँ शैलपुत्री स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||
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