Bhu Kanun Uttarakhand: भारत में लोगों के पास कहीं पर भी आजादी से रहने और घूमने का अधिकार है| और इसमें कहीं पर कोई रोक भी नहीं है| लेकिन क्या हो अगर इस अधिकार के तर्ज पर किसी विशेष स्थान के लोग अपनी संस्कृति, परंपरा, लोकभाषा, जलवायु आदि पर खतरा महसूस करने लगें|
दरअसल आजकल उत्तराखंड राज्य में भू कानून की मांग बहुत जोरों से चल रही है| इसका आभास सोशल मीडिया के ट्रेंड से हो जाता है| आइये जानते हैं भू कानून क्या है? क्या हैं भू कानून के फायदे? और उत्तराखंड में क्यों उठी है भू कानून की मांग?
उत्तराखंड के युवाओं ने हिमाचल प्रदेश की तरह अपने राज्य में भी भू कानून लागू करने की मांग की है| हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश में राज्य का अपना भू कानून है| इसी के तर्ज पर उत्तराखंड वासियों की मांग है कि उनके राज्य में भी इस तरह एक भू कानून हो|
हिमाचल प्रदेश का भू कानून क्या है?
1972 में हिमाचल प्रदेश में एक सख्त कानून बनाया गया| इस कानून के अंतर्गत बाहरी राज्यों के लोग हिमाचल प्रदेश में जमीन नहीं खरीद सकते थे| असल में उस समय हिमाचल राज्य आज की तरह संपन्न नहीं था| यह डर था कि इस प्रदेश के लोग मज़बूरी में बाहर के लोगों को अपनी जमीन ना बेच दें| तब हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्य मंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार यह कानून ले कर आए कि राज्य से बाहर के लोग धारा-118 के तहत हिमाचल प्रदेश में कृषि भूमि नहीं खरीद सकते|
2007 में धूमल सरकार ने धारा-118 में संशोधन करते हुए उन बाहरी राज्य के व्यक्तियों को जमीन खरीदने की इजाजत दी जो इस राज्य में 15 साल से रह रहे हैं| लेकिन बाद में अगली सरकार ने इस सीमा को बढ़ाकर 30 साल कर दिया|
यानी हिमाचल प्रदेश में बाहरी राज्य से आया कोई भी व्यक्ति जमीन नहीं ले सकता है| इसी तर्ज पर उत्तराखंड में भी भू कानून की मांग उठ रही है|
उत्तराखंड भू कानून
सोशल मीडिया में ट्रेंड देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड राज्य के लोग भी भू कानून चाहते हैं| ऐसा नहीं है कि भू कानून की मांग पहली बार हो रही है| दरअसल उत्तराखंड राज्य में भी भू कानून बना था| 09 नवंबर 2000 को राज्य की स्थापना के बाद सन 2002 में एक प्रावधान किया गया था कि अन्य राज्यों के लोग उत्तराखंड में सिर्फ 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे| 2007 में यह सीमा घटाकर 250 वर्गमीटर कर दी गई| इसका मतलब किसी भी राज्य से आया व्यक्ति उत्तराखंड में अधिकतम 250 वर्ग मीटर की कृषि जमीन ही खरीद सकता था|
06 अक्टूबर 2018 को उत्तराखंड सरकार एक नया अध्यादेश ले कर आयी जिसके मुताबिक "उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधर अधिनियम" 1950 में संशोधन का विधेयक पारित किया गया| इसमें धारा 143 (क) और धारा 154(2) जोड़ी गई जिसके तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को ही समाप्त कर दिया गया| निवेश और उद्योगों को बढ़ावा देने के नाम पर लाये इस संशोधन से अन्य राज्य का व्यक्ति कितनी भी जमीन खरीद सकता था|
क्या है उत्तराखंड लोगों का डर
जब से उत्तराखंड सरकार ने बाहरी लोगों के लिए राज्य में जमीन खरीदने की सीमा हटाई है तो राज्य के लोग इसे जल, जंगल और जमीन पर खतरे के रूप में देख रहे हैं| इसके साथ ही यहाँ की जलवायु, सभ्यता, परम्परा, संस्कृति, लोकभाषा के लिए भी खतरा पैदा हो गया है|
उत्तराखंड वासियों का डर का कारण यह भी है कि यदि आज बाहर के रसूखदारों को यहाँ के पहाड़ बेच दिए जाएंगे तो आज के समय हमारे पहाड़ कहकर गर्व महसूस करने वाले यहाँ के लोगों की पीढ़ियों को इस भूमि से वंचित होना पड़ेगा| हिमाचल प्रदेश जो पहाड़ी राज्यों में सबसे संपन्न है, उसके इस विकास का कारण कहीं न कहीं वहां का भू कानून भी है|
भू कानून से उत्तराखंड को क्या फायदा होगा?
उत्तराखंड राज्य में अधिकतर उद्योग दूसरे राज्य के लोग चलाते हैं| चाहे होटल हों, रेस्टोरेंट हो, कारखाने हों या निजी स्कूल-कॉलेज, ज्यादातर संस्थाओं के मालिक उत्तराखंड से बाहर के लोग हैं| इस राज्य के लोगों का इनसे कोई तालुक नहीं है, बस कुछ राज्य के लोग ही इन संस्थाओं में नौकरी करते हैं, जिन्हें उक्त वेतन नहीं दिया जाता|
अगर उत्तराखंड भू कानून बन जाता है, तो बाहर के लोग इस राज्य में जमीन नहीं खरीद सकते जिससे यहाँ का सारा उद्द्योग क्षेत्र राज्य के लोगों के हाथों में आ जाएगा| जाहिर है अगर किसी संस्थान का मालिक राज्य का होगा तो वह वर्कर भी इसी राज्य के रखेगा, जिससे राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे|
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