योगिनी एकादशी: आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है| योगिनी एकादशी के दिन भगवान श्री नारायण की पूजा-अर्चना करने का विधान है| श्री नारायण भगवान् श्री विष्णु का ही नाम है| इस एकादशी व्रत को करने से पीपल के पेड़ को काटने जैसे पाप से मुक्ति मिल जाती है| ऐसी मान्यता है कि यह व्रत करने से किसी के दिए श्राप का भी निवारण हो जाता है| आइये जानते हैं ऐसी विशेष महत्व रखने वाली योगिनी एकादशी वर्ष 2023 में कब है और इसके क्या है इसका महत्व, पूजा-विधि और व्रत कथा|
मान्यता है कि योगिनी एकादशी का व्रत करने से अठासी हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर का फल मिलता है|
योगिनी एकादशी की व्रत विधि
योगिनी एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान आदि से निवृत्त हो जाना चाहिए| उसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें| घर के मंदिर की साफ सफाई करें और भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगा जल से स्नान कराएं| उसके बाद दीपक जलाकर भगवान विष्णु का स्मरण करें| पूजा में तुलसी के पत्तों का भी प्रयोग करें| पूजा के अंत में नारायण भगवान की आरती करें| शाम को भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष एक बार फिर से दीपक जलाकर उनकी आराधना करें| अगले दिन यानी द्वादशी के समय शुद्ध होकर और मुहर्त देखकर व्रत का पारण करें| सबसे पहले भगवान विष्णु जी को भोग लगाएं| भोग में अपनी इच्छा अनुसार कुछ मीठा भी अर्पित करें| लोगों में प्रसाद का वितरण करें| ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें|
योगिनी एकादशी 2023 में कब है
योगिनी एकादशी साल 2023 में 14 जून को बुधवार के दिन है| आषाढ़ महीने की कृष्ण एकादशी को आने वाली योगिनी एकादशी की तिथि 13 जून सुबह 09:28 पर प्रारम्भ होगी और अगले दिन 14 जून सुबह 08:48 बजे यह समाप्त होगी| पारण यानि व्रत तोड़ने का समय 15 जून 2023, गुरुवार को प्रातः 05 बजकर 23 बजे से 08 बजकर 10 मिनट तक रहेगा|
योगिनी एकादशी की पूजा विधि
योगिनी एकादशी के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने का विशेष महत्व है| योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ पीपल के पेड़ की पूजा "ॐ नमः भगवते वासुदेवायः" मन्त्र का उच्चारण करते हुए वस्त्र, चन्दन, जनेऊ, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नेवैद्य, पान-सुपारी अर्पित करनी चाहिए| इससे श्री हरी की कृपा बनती है|
योगिनी एकादशी व्रत कथा
योगिनी एकादशी की कथा अनुसार प्राचीन काल में अल्कापुरी नगर में राजा कुबेर के वहां हेम नामक एक माली रहता था| यह सर्वज्ञात है कि राजा कुबेर शिवजी के बहुत बड़े भक्त थे और इसलिए वह प्रतिदिन सम्पूर्ण विधि से उनकी पूजा अर्चना करते थे| उनके उद्यान की देख रेख करने वाला माली हेम रोजाना भगवान् शंकर के पूजन के लिए मानसरोवर से सुन्दर और सुगन्धित फूल लाता और अपने मालिक राजा कुबेर को देता था| यह माली भी कुबेर की तरह एक यक्ष था|
हेम माली की एक सुन्दर पत्नी थी, जिसका नाम स्वरूपवती था| एक दिन मानसरोवर से पुष्प लेकर आने के बाद हेम माली अपने स्वामी कुबेर के पास जाने के बजाय सीधा अपनी पत्नी के पास चला गया| पत्नी के साथ आनंद प्रमोद और रमण करने में वह इतना व्यस्त हो गया कि यह भूल ही गया कि उसे अपने मालिक के पास पूजा के लिए पुष्प लेकर जाना है| दूसरी तरफ राजा कुबेर ने अपने नित्य क्रम अनुसार अपने आराध्य देव शिवजी की पूजा करना प्रारम्भ कर दिया और अचानक उसे पता चला कि पूजा में पुष्प अर्पण करने के लिए फूल अभी तक आये ही नहीं हैं| क्रोध में आकर राजा कुबेर ने अपने सेवकों को इसका कारण जानने के लिए हेम माली के पास भेजा| अपने स्वामी के क्रोध को देखकर कुबेर के सेवकों ने तुरंत पता लगाया और वापस आकर सुचना दी "हे स्वामी! हेम माली अपनी पत्नी के साथ रमण करने में अत्यंत व्यस्त होने के कारण अभी तक नहीं आया है"| यह सुनकर कुबेर का क्रोध और बड़ गया और उसने उसी समय माली को बुलाया|
हेम माली को अपनी गलती का एहसास हो गया था और वह कापंते हुए अपने स्वामी के पास आया| उसको देखकर राजा कुबेर ने कहा-"हे दुष्ट पापी, धर्म के सहांरक, तुम देवताओं के लिए साक्षात अपराध की मूर्ति हो और मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम्हें सफ़ेद कोढ़ की बीमारी हो जाए, जिस पत्नी की वजह से तुमने अपने धर्म का पालन नहीं किया है उसी पत्नी से तुम्हें वियोग सहना पड़ेगा"| इस श्राप के कारण हेम माली अल्कापुरी से गिरकर उसी क्षण पृथ्वी लोक पर आ गया|
;जब उसने आँखे खोली तो वह अँधेरे जंगल में था, जहाँ ना भोजन था ना पानी| ऊपर से उसे सफ़ेद कोढ़ की बीमारी थी| वह कई दिनों तक भटकता रहा| ऐसे समय में उसने शिवजी की पूजा करना नहीं छोड़ा, इस वजह से उसकी चेतना शुद्ध बनी रही| और शिवजी की कृपा से उसे अपने पुराने समय का भी स्मरण रहा| जंगलों, पहाड़ों और मैदानों में भटकता वह एक दिन हिमालय पर्वत श्रृंखला में जा पहुंचा, जहाँ पर महान तपस्वी मार्कण्डेय जी का आश्रम था| वास्तव में यह हेम माली का सौभाग्य था कि उसे ऐसे महान ऋषि का संग प्राप्त हुआ| जब हेम माली उनके आश्रम पहुंचा तो ऋषि एकदम शांत और स्थिर अवस्था में विराजमान थे| हेम माली ने दूर से ही ऋषि मार्कण्डेय को प्रणाम किया| ऋषि ने उसे अपने पास बुलाया और पूछा-"हे वत्स, तुमने कौनसे ऐसे पाप किये हैं, जिसकी वजह से तुम्हारी यह दुर्दशा हुई है"|
यह सुनकर लज्जा और दुःख से भरे शब्दों में हेम माली ने उत्तर दिया-"हे प्रभु मैं देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर का सेवक यक्ष हूँ| मेरे स्वामी प्रतिदिन भगवान शिव की आराधना करते हैं और इस पूजा के लिए हर रोज पुष्प लेकर आना ही मेरी सेवा थी| लेकिन एक दिन अपनी पत्नी के साथ इंद्र तृप्ति में इतना व्यस्त हो गया कि मैं पुष्प लेकर स्वामी के पास जाना ही भूल गया| जब स्वामी को इस बात का पता चला तो उन्होनें मुझे निम्न लोक में इस कोढ़ की बीमारी का श्राप दिया| यही कारण है कि आज मैं इस दयानीय अवस्था में धरातल में भटक रहा हूँ| लेकिन मेरा सौभाग्य है कि आज मुझे आपके दर्शन हुए| हे श्रेष्ठ ऋषिवर आप मेरी सहायता करें और इस श्राप से मुक्त होने का कोई मार्ग दिखाएं|
ऋषि मार्कण्डेय ने जब हेम माली के यह वचन सुने तो प्रेमपूर्वक और आश्वस्त करते हुए कहा- "हे हेम माली क्यूंकि तुमने मुझे सत्य वचन कहे हैं, इसलिए मैं अब तुम्हें ऐसे व्रत के विषय के बारे में बताऊंगा जिसका पालन करने से तुम्हें अपार मात्रा में लाभ प्राप्त होगा तुम आषाढ़ मॉस के कृष्ण पक्ष में आने वाले एकादशी व्रत जिसे योगिनी एकादशी भी कहते हैं, उसका पालन करोगे, तो अवश्य ही तुम इस दुःख भरी स्थिति से मुक्त हो सकते हो"|
ऋषि मार्कण्डेय के यह वचन सुनकर हेम माली अत्यंत प्रसन्नता से गद-गद हो गया| जब आषाढ़ मॉस की कृष्ण पक्ष में एकादशी आई तो हेम माली ने ऋषि द्वारा बताये गए दिशा निर्देशों के अनुसार इस एकादशी व्रत का पालन किया| उसके परिणाम स्वरुप उसे अपना सुन्दर शरीर पुनः प्राप्त हुआ और वह अत्यंत प्रसन्नता पूर्वक अलकापुरी में अपने परिवार और स्वामी के पास वापस चला गया|
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