Shani Jayanti 2023: भगवान शनि देव हमारे कर्मों के अनुसार हमें फल देते हैं| धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से शनि देव कर्म-फलदाता हैं| ज्योतिष के अनुसार भगवान शनि देव को पापी और क्रूर गृह माना जाता है, क्यूंकि मनुष्य जिस प्रकार का कर्म करता है भगवान शनि देव उसको उसी प्रकार का दंड देते हैं| जिस दिन भगवान शनि का जन्म हुआ था उस दिन को शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है| इस शुभ दिन पर भगवान शनि देव की पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है| आइये जानते हैं शनि जयंती कब है (Shani Jayanti 2023 Date) और क्या है इसकी पूजा विधि और कथा:
शनि देव सूर्य भगवान के पुत्र हैं| इन्हें न्याय का देवता माना जाता है| इनका रंग काला है| इसी कारण इन्हें काला रंग बहुत पसंद है| यदि कुंडली में शनि अनुकूल है तो यह आपको शुभ संकेत देता है, लेकिन यदि इसकी स्थिति प्रतिकूल होती है तो कदम कदम पर बाधाएं उत्पन्न होती हैं| शनि जयंती पर विशेष तरीके से पूजा-अर्चना करने से और उनके शुभ मन्त्रों का जाप करने से भगवान शनि देव प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा अवश्य बरसाते हैं|
शनि जयंती के दिन विशेष पूजा का विधान है, विशेषकर शनि के साढ़े साती आदि शनि दोष से पीड़ितों के लिए इस दिन का महत्व बहुत अधिक माना जाता है| इस दिन शनि मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है|
शनि हिन्दू ज्योतिष में नौ ग्रहों में से एक हैं अन्य ग्रहों की तुलना में यह धीरे चलते हैं इसलिए इन्हें शनिश्चर भी कहा जाता है| शनि को क्रूर और पाप ग्रहों में गिना जाता है और अशुभ फल देने वाला माना जाता है| लेकिन असल में ऐसा नहीं है क्यूंकि शनि न्याय करने वाले देवता हैं और कर्म के अनुसार ही फल देने वाले हैं| शनि देव बुरे कर्म करने वाले को दंड और अच्छे कर्म करने वाले को अच्छे परिणाम देते हैं|
शनि जयंती 2023 कब है?
शनि जयंती ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को होती है| इस वर्ष 2023 में ज्येष्ठ मॉस की अमावस्या तिथि और शनि जयंती 19 मई को पड़ रही है| अमावस्या तिथि की बात करें तो यह 18 मई 2023 को रात 09 बजकर 42 मिनट से 19 मई 2023 को रात 09 बजकर 22 मिनट तक रहेगी| 19 मई को इस तिथि का सूर्योदय समय होने से कैलेंडर में अमावस्या 19 मई को दिखाई जायेगी|
शनि जयंती के तिथि के समय अंतराल में पूजा-अर्चना संपन्न कर शनि देव को प्रसन्न किया जा सकता है|
शनि जयंती की पूजा विधि
शनि जयंती के शुभ दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए| इसके बाद एक लकड़ी की चौकी पर काला रंग का वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर शनि देव की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए| यदि तस्वीर या प्रतिमा नहीं हो तो एक सुपारी रख दें| उसके बाद शुद्ध तेल का दीप प्रज्वलित करके शनि देव की पूजा अर्चना करें| फिर शनि देव को शुद्ध जल, दुग्ध, पञ्चमृत, घी, इत्र से स्नान कराने के बाद उनपर सिंदूर, कुमकुम, काजल लगाकर, नीले या काले रंग के फूल अर्पित करें| तत्पश्चात तेल से तली हुई वस्तुओं का नेवैद्य चढ़ाना चाहिए|
इस दिन शनि चालीसा का पाठ करें| इस दिन व्रत-उपवास रखकर और दान-पुण्य कर भगवान शनि देव को प्रसन्न कर सकते हैं| ऐसी मान्यता है कि दान करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है| इस दिन काला कपडा, काली उड़द की दाल, छाता, लोहे की वस्तु, जामुन, तिल, तेल आदि वस्तुओं का दान कर सकते हैं| शनि देव को उनके अचूक मन्त्रों द्वारा भी प्रसन्न किया जा सकता है|
"ॐ शं अभयहस्ताय नमः"
"ॐ शं शनैश्चराय नमः"
"ॐ नीलांजनसमाभामसं रविपुत्रं यमाग्रजं छायामार्त्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम"
शनि जयंती के दिन क्या फलदाई होता है
शनि देव को प्रसन्न करने के लिए और शनि दोष से बचने के लिए शनि जयंती के दिन हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए| शनिवार या शनि जयंती के दिन छाया पात्र या एक कटोरे में तेल लेकर और उसमें स्वयं का मुख देखकर शनि मंदिर में अर्पण करना चाहिए| इससे शनि देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं| इसके अलावा तिल के तेल का दीपक जलाने से शनि देव शनि प्रभाव से होने वाले कष्टों को दूर करते हैं|
शनि देव के दस नाम
शनि देव के यह नाम बहुत प्रभावशाली हैं| शनि जयंती के दिन इन नामों के उच्चारण कर उनकी पूजा करें| शनि देव के दस नाम इस प्रकार हैं : मदं, पिप्पलाद, यम, सौरि, शनैश्च्र, रौदांतक, बभ्रू, पिंगल, कौणस्थ और कृष्ण| इन नामों का स्मरण करने से अवश्य ही शनि देव प्रसन्न होते हैं|
शनि देव की कथा
शनि देव के जन्म से जुडी एक कथा स्कन्द पुराण में वर्णित है जिसके अनुसार सूर्य देव का विवाह राजा दक्ष की कन्या संज्ञा से हुआ था| सूर्य देव को संज्ञा से तीन पुत्रों का जन्म हुआ| सूर्य देव ने उनका नाम यम, यमुना और मनु रखा| संज्ञा सूर्य देव के तेज से परेशान थी और वह उनके तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाई| इसलिए उन्होनें अपनी प्रतिरूप छाया को अपना उत्तरदायित्व दे कर सूर्य देव को छोड़कर चली गई| छाया शिव भक्त थी और भक्ति और तपस्या में लीन रहती थी| परिणाम स्वरुप छाया के गर्भ से उत्पन्न शिशु जिनका नाम शनि रखा गया|
शनि देव के काले होने के कारण सूर्य देव छाया के ऊपर लांक्षन लगाते हुए बोले कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता| शनि देव के अंदर जन्म से माँ की तपस्या शक्ति का बल था| उन्होनें देखा कि उनके पिता माँ का अपमान कर रहे हैं| उन्होनें क्रूर दृष्टि से पिता की तरफ देखा जिसके कारण पिता का रंग काला सा पड़ने लगा, घोड़ों की चाल रुक गयी और रथ आगे नहीं चल सका| सूर्य देव परेशान होकर शिवजी को पुकारने लगे| शिवजी ने सूर्य देव को सलाह दी कि आपके द्वारा नारी और पुत्र दोनों का ही अपमान हुआ है इसलिए यह दोष लगा है| सूर्य देव ने अपनी गलती स्वीकार की और क्षमा मांगी| इससे उन्होनें पुनः सुन्दर रूप और घोड़ों की गति प्राप्त की| तब से शनि देव सूर्य देव के विरोधी, शिवजी के भक्त और माता के प्रिय हो गए|
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