गंगा दशहरा कब है 2024 | Ganga Dussehra 2024 | Ganga Dashmi

Ganga Dussehra 2024: गंगा दशहरा का पावन पर्व हर साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है| वर्ष 2024 में यह तिथि 16 जून, रविवार को पड़ रही है| इस दिन पवित्र नदी गंगा में स्नान करने से मनुष्य अपने पापों से मुक्त हो जाता है| स्नान के साथ-साथ इस दिन दान-पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है| धार्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन माँ गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था| 

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गंगा दशहरा कब है (Ganga Dussehra 2024 Date) 

ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि का शुभारंभ 16 जून 2024 रविवार को रात्रि 02:32 बजे होगा और यह तिथि 17 जून 2024 सोमवार,  सुबह 04:43 बजे तक रहेगी| पिछले वर्ष गंगा दशहरा 30 मई 2023 को मनाया गया था| 


गंगा दशहरा की पूजा विधि (Ganga Dussehra Puja Vidhi)

गंगा दशहरा के दिन सुबह प्रातः काल उठकर नित्यक्रिया के बाद गंगा जल से स्नान करें| वैसे तो गंगा दशहरा पर गंगा नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है, पर वर्तमान में कोरोना संक्रमण के चलते आप घर पर ही स्नान के पानी में गंगाजल मिलकर स्नान कर सकते हैं| स्नान के बाद सूर्य देवता को अघ्र्र्य देकर नमन करें|  ॐ श्री गंगे नमः मन्त्र का उच्चारण करते हुए गंगा माँ का ध्यान करें| गंगा माँ की पूजा के बाद गरीब, ब्राह्मणों और जरूरतमंद लोगों को दान दक्षिणा दें| 

धार्मिक मान्यता के अनुसार गंगा माँ की आराधना करने से व्यक्ति को दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है| गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है| गंगा दशहरा के दिन भक्तों को माँ गंगा की पूजा-अर्चना के साथ दान-पुण्य भी करना चाहिए| इस दिन सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल मिलता है| 


पौराणिक कथा के अनुसार, माँ गंगा को स्वर्ग लोक से धरती पर राजा भागीरथ लेकर आए थे| इसके लिए उन्होनें कठोर तप किया था| उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा ने भागीरथ की प्रार्थना स्वीकार की थी| लेकिन गंगा मैया ने भगीरथ से कहा था कि पृथ्वी पर अवतरण के समय उनके वेग को रोकने वाला कोई चाहिए| अन्यथा वे धरती को चीरकर रसातल में चली जाएंगी और ऐसे में पृथ्वीवासी अपने पाप से मुक्त नहीं हो पाएंगे| तब भागीरथ ने माँ गंगा की बात सुनकर भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की| भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर प्रभु शिव ने गंगा माँ को अपनी जटाओं में धारण किया|    
            
गंगा नदी का उद्गम स्थल और विस्तार पौराणिक कथा             

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