Budh Purnima 2022: भारतीय उपमहाद्धीप से तालुक रखने वाला बुद्धिज़्म धर्म विश्व का चौथा सबसे बड़ा धर्म है| बुद्धिज़्म को मानने वाले 50 करोड़ से अधिक अनुयायियों को बुद्धिस्ट कहा जाता है, जो गौतम बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित विभिन्न परम्पराओं, विश्वासों और आध्यात्मिक प्रथाओं का पालन करते हैं| भारत में यूँ तो बुद्धिस्ट की जनसँख्या 1 प्रतिशत से भी कम है पर लेकिन इस दिन का महत्व हिन्दू धर्म में भी बहुत बड़ा है| आइये जानते हैं बुद्ध पूर्णिमा कब है (Budh Purnima 2022 Date) और क्यों मनाई जाती है|
- बुद्ध पूर्णिमा कब है 2022?
- बुद्ध पूर्णिमा के दिन का महत्व
- सिद्धार्थ कैसे बने भगवान गौतम बुद्ध
- बुद्ध पूर्णिमा के अलग नाम, पूजा विधि, कथा
बुद्ध पूर्णिमा कब है 2022 (Budh Purnima 2022)
बुद्ध पूर्णिमा प्रत्येक वर्ष वैशाख माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है| इस साल 2022 में यह पूर्णिमा तिथि 16 मई 2022, सोमवार को मनाई जायेगी| पूर्णिमा तिथि की शुरुआत होगी 15 मई 2022 को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर और इसकी समाप्ति होगी 16 मई 2022, 09 बजकर 43 मिनट पर|
पिछले वर्ष 2021 में यह तिथि 26 मई को पड़ी थी जिसमें संयोग से बुद्ध पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण लगा था| इस वर्ष भी वैसाख पूर्णिमा साल का पहला चंद्र ग्रहण लगा, लेकिन भारत में यह दिखाई नहीं दिया|
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बुद्ध पूर्णिमा के दिन का महत्व
बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म वालों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है क्यूंकि वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध इस धरती पर अवतरित हुए थे| इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी तथा यही वह दिन है जब उन्होनें महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था| इसलिए वैशाख माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं|
हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि भगवान बुद्ध, भगवान विष्णु के नौवे अवतार हैं, इसलिए हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है|
सिद्धार्थ कैसे बने भगवान गौतम बुद्ध
भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व, वैशाख पूर्णिमा की तिथि पर, नेपाल के लुम्बिनी में, शाक्या कूल के राजा सुद्धोदन और महारानी माया के घर में हुआ था| बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया| गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण उनको गौतम भी कहा जाता था| सिद्धार्थ की माता का निधन उनके जन्म के सातवे दिन ही हो गया| ऐसे कहा जाता है सिद्धार्थ के जन्म समारोह के दौरान एक साधू ने बालक सिद्धार्थ का भविष्य पड़ते हुए उनके एक महान राजा बनने की या एक महान पवित्र पथ प्रदर्शक बनने की बात कही थी| बचपन से सिद्धार्थ के मन में अपार दया और करुणा थी| वह किसी को दुखी नहीं देख सकते थे| सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र से वेद, पुराण, उपनिषद, राज-काज और युद्ध विद्या सीखी|
सोलह वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का विवाह राजकुमारी यशोदरा के साथ कर दिया गया, जिनसे उन्हें एक पुत्र राहुल हुआ| राजमहल में सारी सुख सुविधाओं के बावजूद सिद्धार्थ का मन नहीं लगता था| फिर जीवन के सच्चे रंग जन्म, जवानी, रोग, बुढ़ापा, मृत्यु, सन्यासी आदि देखने के बाद उनका संसार और भौतिकी सुखों से मोह भंग हो गया और सांसारिक समस्याओं से दुखी होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया| राजमहल, राजपाठ, पत्नी और बच्चे को छोड़कर वह तपस्या को चल पड़े| बिना अन्न, जल ग्रहण किये छह साल की कठिन तपस्या के बाद 35 साल की आयु में वैशाख पूर्णिमा की रात, सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ| ज्ञान की प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से पहचाने गए| जिस जगह पर उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ उसे बोध गया और जिस पेड़ के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्ति हुई उसे बोधि वृक्ष कहा जाता है| बोधि का अर्थ है ज्ञान प्राप्त होना और संसार के सभी मोह-माया से छुटकारा पाना|
बुद्ध पूर्णिमा के अलग नाम, पूजा विधि और कथा
वैशाख पूर्णिमा का दिन विष्णु भगवान को समर्पित है| इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना पाप नाशक माना जाता है| इस पूर्णिमा के समय सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में होते हैं और चन्द्रमा अपनी उच्च राशि तुला में होते हैं|
बुद्ध पूर्णिमा को अलग-अलग स्थान में अलग नाम से जाना जाता है जैसे वैशाख पूजा, वेसाक, वैशाख, फैट डैन, फो दैन, विसाख बुचा, बुद्ध जयंती|
बुद्ध पूर्णिमा के दिन को सत्यविनायक पूर्णिमा के तौर पर भी मनाया जाता है| मान्यता है कि श्री कृष्ण के बचपन के दोस्त सुदामा एक बार उनसे मिलने उनके महल पहुंचे| तब उनके मित्र श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने कष्टों के निवारण हेतु सत्यविनायक व्रत करने का सुझाव दिया| सुदामा ने उनकी बात मानते हुए इस व्रत को विधिपूर्वक किया, जिससे मान्यता है कि उनके सारे कष्ट दूर हो गए| इसी दिन धर्मराज की पूजा भी की जाती है| कहते हैं सत्यविनायक व्रत से मृत्यु के देवता धर्मराज खुश होते हैं और उनके प्रसन्न होने से अकाल मृत्यु और भय ख़त्म हो जाता है|
बुद्ध पूर्णिमा के दिन ध्यान, व्रत, शाकाहार, दान और तीर्थ को शुभ माना जाता है| बौद्ध धर्म में इस दिन बोधि वृक्ष के दर्शन करना भी सौभाग्यशाली होता है|
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