Akshaya Tritiya 2023 Date: अक्षय तृतीया का त्यौहार हिन्दू पंचांग के अनुसार अति शुभ माना जाता है| अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है| ज्योतिष दृष्टि से यह तिथि स्वयं सिद्ध महुर्रत है| इस दिन किया गया कार्य सफल होता है और साथ ही शुभ और मंगलकारी भी होता है| आइये जानते हैं इस वर्ष अक्षय तृतीया कब है (Akshaya Tritiya 2023 Date) और क्या है इसका महत्व, पूजा-विधि और व्रत कथा|
अक्षय तृतीया कब है?
अक्षय तृतीया का पर्व हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है| इस साल यानी 2023 में यह दिन 22 अप्रैल, शनिवार को पड़ रहा है, इसलिए इसी दिन अक्षय तृतीया मनाई जायेगी| तृतीया तिथि की शुरुआत 22 अप्रैल 2023 को प्रातः 07 बजकर 49 मिनट पर होगी और इसकी समाप्ति अगले दिन सुबह 07 बजकर 47 मिनट पर होगी|
अक्षय तृतीया 2021: 14 मई 2021, शुक्रवार
अक्षय तृतीया 2022: 03 मई 2022, मंगलवार
अक्षय तृतीया 2023: 22 अप्रैल 2023, शनिवार
अक्षय तृतीया 2024: 10 मई 2024, शुक्रवार
अक्षय तृतीया 2025: 30 अप्रैल 2025, बुधवार
अक्षय तृतीया का महत्व
अक्षय का अर्थ है जिसका क्षय (यानि क्षति, नुक्सान, नाश) ना हो| इसलिए इस दिन कोई भी जप, यज्ञ, पितृ-तर्पण, दान-पुण्य करने से लाभ कभी कम नहीं होता और हमेशा के लिए व्यक्ति के साथ रहता है| अक्षय तृतीया जिसे अखा तीज के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू समुदायों के लिए अत्यधिक शुभ और पवित्र दिन है| बुधवार के साथ रोहिणी नक्षत्र के दिन पड़ने वाली अक्षय तृतीया को बहुत ही शुभ माना जाता है| भगवान परशुराम जी का जन्मदिन भी इसी तिथि को हुआ था| यह तिथि चिरंजीवी तिथि कहलाती है| त्रेता युग का आरम्भ भी इसी तिथि से माना गया है| इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है| इस दिन किये गए दान, व्रत पूजा-पाठ का अक्षय फल मिलता है|
भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण का अवतार भी इसी दिन हुआ था| ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार जी का जन्म भी इसी दिन माना जाता है| इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था| और द्वापर युग का समापन इसी दिन हुआ था| वृंदावन स्थित श्री बाकेबिहारी जी के मंदिर में केवल इसी दिन ही बिहारीजी के चरण दर्शन होते हैं| यह सर्व सिद्ध महुर्रत माना जाता है| इस दिन पंचांग देखे बिना कोई भी मंगल और शुभ कार्य किया जा सकता है| नया व्यवसाय और नए कार्य की शुरुआत इस दिन से की जा सकती है| अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी की पूजा होती है|
इस प्रकार अक्षय तृतीया के दिन का बहुत ही महत्व है| इस दिन सोना चांदी जमीन वाहन आदि खरीदना अति शुभ होता है| माना जाता है कि अक्षय तृतीया सौभाग्य और सफलता लाती है, इसलिए अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने से आने वाले भविष्य में समृद्धि और अधिक धन मिलता है| इस दिन दान, पूजा और खरीददारी करने से सौभाग्य, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य और शुभ फल की प्राप्ति होती है|
अक्षय तृतीया के दिन की पूजा विधि
अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठें व किसी पवित्र नदी में स्नान कीजिये| यदि नदी में आप स्नान नहीं कर सकते हैं तो घर पर नहाने के पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान कर सकते हैं| इसके बाद पीले रंग का स्वच्छ वस्त्र धारण कीजिये| इसके बाद पूजा घर में ही पूजा कीजिये| सबसे पहले आप सूर्य देव को जल अर्पित कीजिये| इस दिन महिलाएं व्रत रखती है इससे घर में माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है|
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इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी को एक चौकी पर पीला कपडा बिछाकर उसपर स्थापित कीजिये| सबसे पहले गणेश जी का ध्यान कर उनका पूजन कीजिये| इसके बाद भगवान विष्णु जी को गंगा जल से स्नान कराएं, इसके बाद लक्ष्मी जी को स्नान कराएं| फिर विष्णु जी पीले रंग का फूल चढ़ाएं और माता लक्ष्मी को लाल कमल के फूल चढ़ाएं| इसके बाद धूप, दीप जलाकर फल, मेवा आदि का भोग चढ़ाएं| इसके बाद विधि पूर्वक आरती-पूजन करें| पूजा के बाद हाथ जोड़कर पूजा में हुई गलती के लिए क्षमा-याचना कीजिये|
इस दिन दान का विशेष महत्व है इसलिए गरीब लोगों को भोजन कराएं| अक्षय तृतीया के समय गर्मी शुरू हो जाती है इसलिए इस दिन मिट्टी के घड़े दान करना भी शुभ होता है|
अक्षय तृतीया की व्रत कथा
अक्षय तृतीया की कथा सुनने और विधि पूर्वक पूजा करने से बहुत लाभ होता है| इस कथा का पुराणों में भी महत्व है| कथा इस प्रकार है:
धरमदास नाम का एक व्यक्ति अपने परिवार के साथ एक छोटे से गाँव में रहता था| वह बहुत गरीब था| उसे हमेशा अपने परिवार के भरण-पोषण की चिंता रहती थी| उसके परिवार में कई सदस्य थे| धरमदास बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था| एक बार उसने कहीं से अक्षय तृतीया व्रत का महत्व सुना और उसने यह व्रत करने का सोचा| अक्षय तृतीया के दिन जल्दी उठकर उसने गंगा स्नान किया और फिर विधि पूर्वक भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना एवं आरती की| इस दिन उसने अपने सामर्थ्य अनुसार जल से भरे घड़े, सत्तू, चावल, जौं, नमक, गेहूँ, दही, घी, गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि वस्तु भगवान के चरणों में रखकर ब्राह्मणों को अर्पित किया| यह सब देखकर धरमदास की पत्नी और परिवार वालों ने उसे रोकने की कोशिश की| लेकिन धरमदास अपने पुण्य कर्म से विचलित नहीं हुआ| और उसने ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान किया|
हर अक्षय तृतीया को धरमदास ने विधि से इस दिन पूजा एवं दान आदि कर्म किये| बुढ़ापे का रोग, परिवार की परेशानी भी उसे इस व्रत से विचलित नहीं कर पाई| इस जन्म के पुण्य प्रभाव से धरमदास ने अगले जन्म में राजा उषावती के रूप में जन्म लिया| उषावती राजा बहुत ही प्रतापी राजा थे| उनके राज्य में प्रजा बहुत खुश थी| उन्हें किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी| अक्षय तृतीया के पुण्य प्रभावों से राजा को वैभव एवं यश की प्राप्ति हुई| जैसे भगवान ने धरमदास पर अपनी कृपा की वैसे ही जो भी व्यक्ति अक्षय तृतीया की कथा सुनते हैं और विधि पूर्वक पूजा, दान आदि करते हैं उन्हें भी अक्षय पुण्य एवं यश की प्राप्ति होती है|
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