कंस्ट्रक्शन के काम में कंक्रीट का एक अहम् योगदान है| एक उच्चतम गुणवत्ता वाली कंक्रीट प्राप्त करने के लिए, हमें एक तय मानक वाले ingredients (aggregate, cement, water आदि) की आवश्यकता पड़ती है| चलिए जानते हैं क्यों और कैसे करते हैं aggregate का sieve analysis|
कंक्रीट में अधिकतम aggregate के size के होने के कुछ फायदे हैं जैसे इससे सीमेंट की खपत कम होगी, पानी कम लगेगा और drying shrinkage भी नियंत्रण में रहेगा| फिर भी 80 mm तक के aggregate का ही इस्तेमाल देखा जा सकता है क्यूंकि उससे ऊपर के आकार वाली रोड़ी के साथ काम करना कई कारणों से मुश्किल पड़ जाता है जैसे section की चौड़ाई, steel reinforcement की दुरी, clear cover आदि| अलग-अलग practical कारणों से 20mm तक के aggregate को reinforced concrete के लिए संतोषजनक माना जाता है|
कंक्रीट में aggregate को size के आधार पर दो भागों में बांटा गया है: coarse aggregate (4.75 mm से अधिक) और fine aggregate (4.75 mm और उससे कम)| Concrete का लगभग 80 प्रतिशत भाग aggregate ही होता है इसलिए अलग-अलग मिक्स आकार (well graded aggregate) और बनावट (texture) वाली रोड़ी (coarse and fine) से ना केवल कंक्रीट की workability और फिनिशिंग अच्छी होती है पर ठोस होने के बाद उसकी दबाव क्षमता (Compressive Strength) भी बड़ जाती है|
किसी भी निर्माण कार्य में कंक्रीट की target strength को लक्ष्य बनाकर सबसे पहले mix-design तैयार किया जाता है जिससे हमें उसमें उपयोग में आने वाले aggregate के आकार के हिसाब से अनुपात (ratio) मिल सके| यह निर्धारित होने पर कि हमें कितना 10mm, कितना 20mm, कितना रेता (sand) आदि चाहिए हम अपनी मनचाही कंक्रीट बना सकते हैं (Batching of Concrete)| क्या इससे हम aggregate के प्रति संतुष्ट रहेंगे कि अब हमारी कंक्रीट हमारे लक्ष्य अनुसार मिल जायेगी| क्यूंकि अक्सर mix-design एक controlled वातावरण में होता है, लेकिन field में हमें समय-समय पर कंक्रीट के ingredient की जांच करनी पड़ती है|
हमारे तय अनुपात (ratio) के अनुसार अगर एग्रीगेट ना हो तो हमें उचित परिणाम शायद ना मिले| इसके लिए aggregate की sieve analysis जरुरी होती है जिसे हम भारतीय मानक IS 383 / IS 2386 (1) के अनुसार कर सकते हैं|
इस जांच के आधार पर हम कह सकते हैं कि aggregate भारतीय मानकों के अनुसार अपने आकार की सीमा में हैं|
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