कब है विश्व शरणार्थी दिवस 2023 | World Refugee Day 2023 Theme

WORLD REFUGEE DAY 2023 THEME IN HINDI

20 जून: विश्व शरणार्थी दिवस 2023 World Refugee Day

यह स्पष्ट है कि एक परिवर्तन लाने के लिए हर किसी वर्ग को साथ लेकर चलना अनिवार्य होता है|कोविड-19 महामारी और पिछले कुछ समय में विश्व से सुनने में आई झड़पों और विरोध प्रदर्शनों ने इस बात से एक बार फिर अवगत कराया है कि हमें एक अधिक समावेशी और समान दुनिया के लिए लड़ने की कितनी आवश्यकता है| और इसमें हर किसी का योगदान महत्व रखता है| 
 

वर्ल्ड रिफ्यूजी डे 2023 की थीम (Theme of World Refugee Day 2023)  

"Hope Away From Home
इस वर्ष, विश्व शरणार्थी दिवस 2023 शरणार्थियों के लिए समावेश और समाधान की शक्ति पर केंद्रित हैसंघर्ष और उत्पीड़न से बचने के बाद शरणार्थियों को सुरक्षा देना और मेजबान देश के समुदायों में शामिल करना, उनके जीवन को फिर से शुरू करने में उनका समर्थन करने और उन्हें सक्षम बनाने का सबसे प्रभावी तरीका है| यह उन्हें अनुकूल परिस्थितियां होने पर, स्वेच्छा से घर लौटने और अपने देशों का पुनर्निर्माण करने या अन्य देश में बसने के लिए तैयार करने का सबसे अच्छा तरीका है|

विश्व शरणार्थी दिवस (वर्ल्ड रिफ्यूजी डे)

वर्ल्ड रिफ्यूजी डे हर साल 20 जून को अंतराष्ट्रीय समुदाय का विश्वभर के शरणार्थियों की हालत की तरफ ध्यान खींचने के लिए मनाया जाता है|

2001 में शरणार्थियों के लिए हुए सम्मलेन, 1951 को 50 वर्ष पुरे होने वाले थे| इस उपलक्ष में 4 दिसंबर 2000 को सयुंक्त राष्ट्र की महासभा ने एक रेसोलुशन के साथ रिफ्यूजी के लिए एक दिन मनाने की घोषणा करी| इससे पहले से ही अफ्रीकन रिफ्यूजी डे आधिकारिक तौर कई देशों में मनाया जाता था| बाद में इसी दिन (20 जून) को अंतराष्ट्रीय रिफ्यूजी डे के लिए भी चुन लिया गया| इस तरह 2001 में यह दिन पहली बार मनाया गया|           

शरणार्थी कौन होते हैं (Refugees kaun hain?) 

सयुंक्त राष्ट्र की शरणार्थी सम्मलेन 1951 के अनुसार एक शरणार्थी वह है जो अपनी जाति, धर्म, किसी विशेष सामाजिक समूह में सदस्यता या राजनितिक विचारों के लिए उत्पीड़न के भय के कारण अपने घर व देश छोड़कर भाग गया हो| इसके साथ कई शरणार्थी प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदा के प्रभाव से बचने के लिए निर्वासित होते हैं| 

साल में कई लोग युद्ध, उत्पीड़न या आतंक से बचने के लिए अपना घर छोड़ने को मजबूर होते हैं| शरणार्थी किसी देश या स्थान की शरण के लिए दर-दर भटकते हैं लेकिन शरणार्थी की स्थिति के उनके दावे का अभी तक निश्चित रूप से मूल्यांकन नहीं किया गया है कि वे भाग गए हैं|      

1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन (शरणार्थी सम्मलेन) और इसका 1967 प्रोटोकॉल 

शरणार्थी सम्मलेन 1951 और इसके 1967 के प्रोटोकॉल से विश्व भर के शरणार्थियों को काफी हद तक मदद मिली है| यह विश्व में केवल कानूनी उपकरण है जो शरणार्थियों के जीवन के पहलुओं को स्पष्ट रूप से कवर करता है| 

इस सम्मलेन में कई प्रकार के अधिकारों को शामिल किया गया है और अपने मेजबान देश के प्रति शरणार्थी के दायित्वों पर प्रकाश डाला गया है| इस सम्मेलन की आधारशिला वह सिद्धांत है जिसके तहत एक शरणार्थी को उस देश में वापस नहीं भेजना चाहिए जहाँ उसके जीवन और स्वतंत्रता को खतरा है| 

लेकिन साथ ही इस सरंक्षण का दावा वह शरणार्थी नहीं कर सकता, जिन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरा समझा जाता हो, या जो विशेष रूप से किसी गंभीर अपराध के दोषी ठहराए गए हों|       

भारत देश में शरणार्थी 

भारत में बिना वैध भारतीय नागरिकता वाले लोगों को अवैध प्रवासियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है| चूँकि भारत 1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, इसलिए सयुंक्त राष्ट्र के शरणार्थियों के लिए गैर-शोधन और निष्कासन के सिद्धांत भारत में लागू नहीं होते|  

भारतीय राष्ट्रीयता कानून, नागरिकता अधिनियम (भारत के सविंधान के अनुच्छेद 5 से 11) द्वारा शासित है, जिसे 1955 में पारित किया गया, और जिसमें नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) बनाया गया था| इसमें 1986, 1992, 2003, 2005, 2015 और 2019 में संशोधन किया गया|

जब से भारत स्वतंत्र हुआ है तब से भारत की सरकार ने केवल तिबित और श्रीलंका के क़ानूनी अप्रवासियों को मान्यता दी है| 12 दिसंबर 2019 को संसद से नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के बाद, 31 दिसंबर 2014 से पहले, भारत के पडोसी देश अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आये हिन्दू, जैन, पार्सिस, क्रिस्चियन, सिख और बुद्धिस्ट जैसे उत्पीड़त अल्पसंख्यक समुदायों के प्रवासी लोग भारतीय नागरिकता के पात्र होंगे| इसमें मुस्लिम समाज को जो इन देशों में बहुसंख्यक हैं और इस कानून से बाहर रखा गया है|
                   
For other important days click the following month:-   
 October 

Post a Comment

0 Comments