Pausha - पौष
सनातन संस्कृति के कैलेंडर (या पंचांग या संवत) में पौष को साल का दसवा महीना माना जाता है| यह ग्रेगोरियन कैलेंडर के दिसंबर-जनवरी में पड़ता है| साल 2023 की शुरुआत पौष माह से हो रही है| साल के शुरुआत में पौष माह के दौरान 'विक्रम संवत' (calendar) का 2079वा साल और 'शक संवत' के हिसाब से 1944वा साल चल रहा है| वहीँ साल के आखिरी में यानि दिसंबर माह में पौष माह के दौरान 'विक्रम संवत' (calendar) का 2080वा साल और 'शक संवत' के हिसाब से 1945वा साल चल रहा होगा| विक्रम संवत के अनुसार मार्गशीर्ष महीने में पूर्णिमा के बाद वाली प्रतिपदा, पौष मास की पहली तिथि होती है|
पौष माह कब शुरू हो रहा है? (Paush Month 2022)
2022 में पौष माह 09 दिसंबर को शुरू हुआ| साल 2023 के पहला दिन पौष माह विक्रम सम्वत 2079' के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पड़ रही है| यह पौष माह 06 जनवरी 2023 तक रहेगा| वहीँ विक्रम सम्वत 2080 का पौष माह 27 दिसंबर 2023 को शुरू होगा जब पौष माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा होगी|
पौष मास का नाम कैसे पड़ा (Paush month)
पौष मास को यह नाम 'पुष्य' नक्षत्र की वजह से मिला है| पुष्य हिन्दू पंचांग की काल गणना में उपयोग में आने वाले 27 नक्षत्रों में से 8वा नक्षत्र है| पौष मास को हिंदी में पूस माह कहकर भी पुकारा जाता है|
पुष्य नक्षत्र अंग्रेजी में (Pushya in english)
पुष्य नक्षत्र को अंग्रेजी में 'cancer' constellation कहते हैं| कई ग्रंथों में पुष्य नक्षत्र का नाम तिष्य बताया गया है| भगवान् राम के भाई, 'भरत' इसी नक्षत्र के अंतर्गत आते हैं|
पौष महीने के महत्वपूर्ण तिथियां (Important Days in Paush Month)
विक्रम संवत के मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा के बाद ही पौष मास आरम्भ हो जाता है| हेमत ऋतू के इस मास में ठण्ड बहुत होती है| आइये जानते हैं पौष मास की कुछ महत्वपूर्ण तिथियां|
तिथि | महत्वता |
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प्रतिपदा
(कृष्ण पक्ष)
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द्धितीया
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तृतीया
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चतुर्थी
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पंचमी
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षष्ठी
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सप्तमी
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अष्टमी
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नवमी
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दशमी
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एकादशी
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सफला एकादशी (Saphla Ekadashi)
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द्धादशी
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त्रयोदशी
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चतुर्दशी
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अमावस्या
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प्रतिपदा
(शुक्ल पक्ष)
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द्धितीया
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तृतीया
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चतुर्थी
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पंचमी
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षष्ठी
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सप्तमी
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अष्टमी
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बनादा अष्टमी (Banada Ashtami)
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नवमी
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दशमी
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एकादशी
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पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi)
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द्धादशी
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त्रयोदशी
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चतुर्दशी
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पूर्णिमा
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पौष पूर्णिमा (Paush Purnima)
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पढ़ें :2022 में मकर संक्रांति कब है?
पौष मास का महत्व और व्रत-त्यौहार
पौष मॉस में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व माना गया है|शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म,यश, ज्ञान और वैराग्य को भग कहा गया है और जो इनसे युक्त हो उन्हें भगवान् माना गया है| मान्यता है कि सूर्य देवता के भग नाम से पौष माह में उनकी पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है| पौष माह में सूर्य अधिकतर समय धनु राशि (Sagittarius) में रहते हैं और धनु राशि के देवता बृहस्पति माने जाते हैं| मान्यता है इस समय देव गुरु बृहस्पति देवताओं सहित सभी मनुष्यों को धर्म-सत्कर्म का ज्ञान देते हैं|
लोग सांसारिक कार्यों की बजाय धर्म-कर्म में रूचि लें इसीलिए इस सौर धनु मॉस को खर मास की संज्ञा ऋषि-मुनियों ने दी| हालाँकि विद्वानों का मानना है कि सांसारिक कार्यों को निषिद्ध करने के पीछे ऋषि-मुनियों का उद्देश्य सिर्फ यह था कि लोग कुछ समय धार्मिक कार्यों में रूचि लेकर आध्यात्मिक रूप से आत्मोन्नति करें| मान्यता है कि इस मास मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए क्यूंकि उनका शुभ फल नहीं मिलता|
पौष मास में सूर्योपासना का महत्व
पौष मास में भग नाम से सूर्य को ईश्वर का ही स्वरुप माना गया है| धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस महीने अच्छे स्वास्थ्य और मान-सम्मान की प्राप्ति के लिए भगवान् सूर्यनारायण की पूजा का विधान है| इस महीने सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाता है और उपवास रखा जाता है| कुछ पुराणों में पौष मास के प्रत्येक रविवार ताम्बे के पात्र में शुद्ध जल,लाल चन्दन,लाल रंग के पुष्प डालकर भगवान् विष्णु के मन्त्रों का जाप करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देने की मान्यता है| इस मास प्रत्येक रविवार व्रत-उपवास रखने और तिल-चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है|
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