Jyeshtha - ज्येष्ठ
Jyeshtha Important Days | Jyeshtha maas ki katha |
सनातन संस्कृति के कैलेंडर (या पंचांग या संवत) में ज्येष्ठ को साल का तीसरा महीना माना जाता है| यह ग्रेगोरियन कैलेंडर के मई-जून में पड़ता है| इस साल 2024 में 'विक्रम संवत' (calendar) का 2081वा साल और 'शक संवत' के हिसाब से 1946वा साल का आरम्भ होगा| हम जानते हैं की भारत ने 1957 में 'शक संवत' को त्याहारों की गणना के लिए 'इंडियन नेशनल कैलेंडर' के रूप में अपनाया है| वैशाख महीने में अमावस्या के बाद वाली प्रतिपदा, ज्येष्ठ की पहली तिथि होती है|
ज्येष्ठ मास का नाम कैसे पड़ा (Jyeshth month)
ज्येष्ठ मास को यह नाम 'ज्येष्ठा' नक्षत्र की वजह से मिला है| ज्येष्ठा हिन्दू पंचांग की काल गणना में उपयोग में आने वाले 27 नक्षत्रों में से 18वा नक्षत्र है|
ज्येष्ठा नक्षत्र अंग्रेजी में (ज्येष्ठा in english)
ज्येष्ठा नक्षत्र को अंग्रेजी में स्कॉर्पियस 'scorpius' constellation कहते हैं|
ज्येष्ठ महीने के महत्वपूर्ण तिथियां (Important Days in ज्येष्ठ Month)
शक संवत के वैशाख महीने की पूर्णिमा के बाद ही विक्रम सम्वत का ज्येष्ठ मास आरम्भ हो जाता है| बल्कि शक संवत का ज्येष्ठ महीना 15 तिथियों बाद अमावस्या के बाद शुरू होता है|
क्यूंकि भारत में शक संवत (shaka calendar or panchang) को राष्ट्रीय दर्जा मिला है, नीचे दी गई तिथियों की शुरुआत उसी को ध्यान में रखकर बताई गई है| शक सम्वत (calendar) के हिसाब से शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से मास का आरम्भ होता है, आइये जानते हैं ज्येष्ठ मास की तिथियों के खास महत्व|
तिथि | महत्वता |
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प्रतिपदा (कृष्ण पक्ष) |
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द्धितीया | |
तृतीया | |
चतुर्थी | |
पंचमी | |
षष्ठी | |
सप्तमी | |
अष्टमी | |
नवमी | |
दशमी | |
एकादशी |
अपरा एकादशी (Apra Ekadashi)
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द्धादशी | |
त्रयोदशी | |
चतुर्दशी | |
अमावस्या |
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प्रतिपदा (शुक्ल पक्ष) | |
द्धितीया | |
तृतीया | |
चतुर्थी | |
पंचमी | |
षष्ठी | |
सप्तमी | |
अष्टमी | |
नवमी | |
दशमी | |
एकादशी | |
द्धादशी | |
त्रयोदशी | |
चतुर्दशी | |
पूर्णिमा |
ज्येष्ठ मास की माहात्म्य कथा
महर्षि स्कन्दचि अपने शिष्यों को ज्येष्ठ माह का महत्व सुनाते हुए कहने लगे कि इस महीने में जल देने का विशेष महत्व है| इस माह में किया गया थोड़ा सा दान अधिक पुण्य प्रदान करता है| ज्येष्ठ मास में भगवान का सच्चे हृदय से ध्यान करने वाले मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है| ज्येष्ठ माह के देवता श्रीहरि विष्णु जी हैं| इस माह में अन्नदान, जलदान, व्यंजनदान, चन्दन दान, हलदान और जूतों का दान करने से शांति प्राप्त होती है| चन्दन का दान करने से देवता, ऋषि व पितृ प्रसन्न होते हैं| निर्जल छेत्र में प्राणी मात्र की रक्षा के लिए जल का दान करना चाहिए| छाया दार वृक्ष लगाने चाहिए और प्याऊ लगाने चाहिए|
ऋषि बोले-"हे शिष्यों ! जो मनुष्य सक्षम होते हुए भी ज्येष्ठ मास में जल जैसा सुलभ दान नहीं करता वह मृत्यु के पश्चात नर्क की यातना भोगकर पपीहे की योनि में पड़ता है| इस विषय में मैं तुम्हे एक प्राचीन कथा सुनाता हूँ|"
"त्रेता युग के अंत में महिष्मतिपुरी में वेद वेदान्तों को जानने वाला सुमंत नाम का एक श्रेष्ठ ब्राह्मण अपनी पत्नी और पुत्र के साथ रहता था| उसकी पत्नी का नाम गुणवती और पुत्र का नाम देवशर्मा था| एक दिन वह ब्राह्मण समाधी लगाने के लिए वन में गया| कुछ समय श्रीहरि का ध्यान कर वह ब्राह्मण वहां स्थित सुन्दर सरोवर का जल पीकर वृक्ष की छाँव में सो गया, जो कि सरोवर के एक दम नजदीक था| अब जो भी जीव जानवर सरोवर में जल पीने आता तो वह उसे देखकर डर कर भाग जाता और जल पीने से वंचित रह जाता| कुछ नन्हे जीव तो प्यास के कारण मृत्यु को प्राप्त हो गए|
सूर्य देव के अस्त होने पर वह ब्राह्मण अपने घर लौट आया लेकिन अनजाने में हुआ पाप भी उसके साथ-साथ आ गया| कुछ समय बाद ब्राह्मण अस्वस्थ हुआ और उसकी मृत्यु हो गई| उसकी पतिव्रता स्त्री भी अपने पुत्र और घर का त्याग कर ब्राह्मण के साथ सती हो गयी| अज्ञात पाप के दोष से वह ब्राह्मण मृत्यु के पश्चात कई समय तक नर्क की यातना भोगकर चातक की योनि में पड़ा और उसकी पत्नी चातकी की योनि में|
चातक और चातकी के योनि में आकर दोनों अपने पुत्र के घर के समीप एक वृक्ष पर रहने लगे| चातक अपने पूर्व जन्म के कर्मों को याद कर जोर-जोर से रोता| उसके पुत्र ने रोने की आवाज़ सुनकर उन दोनों को वहां से भागने और न रोने को कहा परन्तु चातक का रोना बंद नहीं हुआ| थक हारकर उसके पुत्र ने वृक्ष को आग लगा दी जिससे चातक और चातकी के पंख जल गए और वह घायल अवस्था में नीचे पृथ्वी पर गिर पड़े| और आपस में अपने कष्टों की बात करने लगे| उनके बातों को सुनकर उनके पुत्र को बड़ा विस्मय हुआ कि ये तो मेरे माता-पिता हैं|
वह ब्राह्मण पुत्र तब श्रेष्ठ ऋषियों के आश्रम में गया और अपने माता-पिता का सारा वार्तां सुना उनसे उनके उद्धार का उपाय पूछने लगा| तब ऋषियों ने उसे बताया तुम्हारे पिता पर पूर्व जन्म का अज्ञात पाप है| उससे मुक्ति के लिए तुम जलदान की व्यवस्था करो|
तब ब्राह्मण पुत्र ने ऋषियों के कहे अनुसार अपने माता-पिता के नाम का निर्जन वन में प्याऊ लगा दीया जहाँ पर आने वाले मनुष्य, पक्षी और जीव-जंतु जल पीने लगे| उसके इस पुण्य के प्रभाव से उसके माता-पिता चातक-चातकी के योनि से छूटकर अपने पुत्र को सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हुए बैकुंठ धाम को चले गए|" इस प्रकार ज्येष्ठ माह में जलदान का विशेष महत्व है | | जो भी मनुष्य प्राणियों, पक्षियों और जीव-जंतुओं के लिए जल की व्यवस्था करता है वह इस लोक के सुखों को भोगकर अंत में बैकुंठ धाम को जाता है|
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